आत्मोपदेश | Atmopadesh

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Atmopadesh by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ [+ तत्वज्ञान का आरम्भ .. “झच्छा, श्रेय एक ऐसा विषय है या नहीं जिसके ऊपर निभर रहना दम लोगों का कत्तव्य हो ?”” “निश्चय ही श्रेय के ऊपर निभेर रदना मनुष्य का क्चेव्य है।” .*“शर श्रेय पर विश्वास करना उचित है या नहीं ?” ' “हो, विश्वास करना उचित दै ।”' “अच्छा, जो स्थायी दै उस पर दम लोग निभर रद सकते हैं या नहीं ?”” “नहीं, नहीं रह सकते ।” “'झच्छा, सुख का क्या कुछ स्थापित्व है ?”” “नहीं, स्थायित्व नहीं है. ।”” 'प्रच्छा, तब सुख को अथोत्‌ प्रेय को श्रेय के स्थान से हटा कर तराज से उतार फंको । किन्तु यदि तुम्हारे .ज्ञान-चछुआओं - की दृष्टि चीण और अस्पप्ट हो, यदि केवल इसी एक तराजू की जाँच को यथेप्ट नहीं सममते हो, तो एक और तराजू पर तौल लो । “प्जो श्रेय दै उसी में झानन्द लाभ 'करना ठीक दै या नहीं प्प्हॉ यद्दी शोक है ।?? “और सुख की सामप्रियों में झानन्द लाभ करना क्या ठीक है ?”' इन सब विषयों को ततराज पर ठीक तरह से तोल कर तब उत्तार देना । नियम का तराज यदि तुम्दारे हाथ में हो तो तुम्दारे लिए इन सब विषयों का चिचार क़रना--तौलना सहज हो जायगा 1 - इन सब -नियमों की परीक्षा करना--स्थापन ' करना--ही तत्त्वविद्या का मुख्य उद्देश्य दै । और . इन नियमों के आविष्क्त




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