स्वतंत्र्योत्तर हिन्दी उपन्यास साहित्य में नारी का बदलता मूल्य | Swatantryottar Hindi Upanyas Sahitya Men Nari Ka Badalata Mulya

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Swatantryottar Hindi Upanyas Sahitya Men Nari Ka Badalata Mulya by रश्मि पाण्डेय - Rashmi Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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था और नारी घर के समीप रहकर कृषि कार्य करते हुए समूह अथवा कबीले के लिये आवश्यक भोजन जुटाती थी | '* इस प्रकार दोनो मिलकर काम करते थे । धीर-धीरे पुरूष शिकार के लिए जगलो में घूमने लगा। इसके परिणाम स्वरूप वह नई-नई वस्तुओं के सम्पर्क मे आने लगा। जबकि नारी अपने घर से बहुत दूर नहीं निकल पाती थी | धीरे- धीरे पुरूष नवीन खोज की ओर अग्रसर हुआ और उसने पशुओ को पालतू बनाकर सीधा किया । तदुपरात उसने धातु का अविष्कार करके क्रमश हल का निर्माण किया । इस प्रकार उसने पालतू पशुओ के सहयोग से हल द्वारा खेत को जोत कर कृषि कार्य सम्पन्न किया, जिससे पहले की अपेक्षा अधिक मात्रा मे फसल प्राप्त हुई । इस प्रकार उसने क्रमश कई उपलब्धियाँ आर्जित की- पशु, हल तथा अन्न | अभी तक उसके पास कुछ बचाने लायक था ही नही, अत वह मिल बॉट कर खाने मे सतुष्ट था। किन्तु अब स्थायी -सपत्त्ति प्राप्त होने के कारण मालिकत्व को लेकर आपस मे सघर्ष आरम्भ हो गया। कबीले के ताकतवर लोगो ने अन्य कमजोर लोगो को लाठी के बलबूते दबाकर अपना वर्चस्व कायम फर लिया। और इस प्रकार समाज मे वर्ग- विभाजन की प्रक्रिया का श्री गणेश हुआ, फलस्रूप नारी की स्थिति कमतर हो गयी । यह सच है कि नवीन आविष्कारों के चलते नारियो को पहले की तरह अधिक श्रम नहीं करना पडता था किन्तु वह पहले की तरह स्वतत्र भी नहीं रह गयी और क्रमश पुरूष पर आश्रित होती गयी। अब जीविका का माध्यम कृषि हो गया इसलिए उस समय जमीन मे कठोर -श्रम करना पडता था। जबकि नरियाँ गर्भावस्‍था के समय तीन से लकर छ महीने तक कठोर -श्रम के योग्य नहीं रहती थी । इसलिये वे पुरूषों के साथ स्पर्धा में भी पीछे रह गयी, जबकि पुरूष अपनी शारीरिक प्रकृति के कारण सदैव श्रम करने की स्थिति मे रहते थे। “आर्थिक क्षेत्र मे पुरूष से पीछे रह जाना ही नारी की दशा को उत्तरोत्तर शोचनीय बनाता गया।” पुरूष ने नारी की कायिक स्थिति का लाभ उठात हुए उसे दबाकर अपनी श्रेष्ठता स्थापित कर दी। कालक्रम मे नारी का कार्य-प्रजनन




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