महाराणा का महत्त्व | Maharana Ka Mahattv

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Maharana Ka Mahattv by जयशंकर प्रसाद - jayshankar prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सहाराणा का सदच्व ध्यान कीजिये; वह वनिता है शत्रु की । दिल्‍लीपति का सेवप हो छाया यहाँ जो रददीमखों कवर का चिर-सित्र है उसकी ही. परिणीता है यह सुदरी इसका चन्दी रहना नेतिक दृष्टि से + ठीक नदी कया ? जब तक ये सब शांत हो । कह तमक कर तब प्रताप ने--''क्या कहा चनुचित वल से लेना काम सुकम्म है ! इस अवला के बल से होगे. सबल क्या? रण में टूटे ठाल तुस्हारी जो कभी तो बचने के लिये शत्लु के. सामने पीठ करोगे ? नहीं; कसी ऐसा नही; दृद-प्रतिज्ञ यह इृदव; तुम्हारों ढाल बन तुम्हे बचावेगा । इसपर भी ध्यान दो घोर अंधेरे मे उठती जब लहर हो तुमुल॒घात-ग्रतिघात पवन का हो रद भीसकाय जलराशि क्षुब्घ हो सासने कर्णघार-रक्षित दृदू-रदय सुननाव को




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