बटवारा | Batwaara

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Batwaara by सी. एल. काविश - C. L. Kavish

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सी. एल. काविश - C. L. Kavish

Add Infomation AboutC. L. Kavish

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
कि धनीराम ने श्रॉगन में प्रवेश करते ही पुकारा-- “काका ! काका है”? घनीराम की पत्नी ने झपनी बहू की श्रोर देखा, वह भी सास की तरफ देखने लगी । धघनीराम घर में झ्राते ही हमेशा गमस्वरूप या रामझव- तार के बच्चों को पुकारता था । झाज क्या बात है, जो उसने श्रपने बाप को अम्वाज दी ? सुद्दागन उठकर बाहर आरा गई श्र बोली-- बढ़े बाबू तो दोपहर को हरिद्वार चले गये, कहते थे शाम को झाऊंगा | श्रभी तक तो लौटे नहीं । घनीराम ने सरसे पगड़ी उतारकर बीबी को देते हुए कहा-- आज तुम्हारे बेटे ने मेरे पुरखों की चिता पर लात मारी है ।” “क्यों, क्या हुश्रा ?” सुददागनने हैसनीसे पतिकी श्रोर देखते हुए पूछा । “यह मत पूछो सु्दागन, वह दज्जत जो मैंने वर्षो मे कमाई है, वह इमानदारी, जिसे मैं इस परदेशमे भी सीनेसे लगाये रखता हूँ, डुरे-से-बुरे समय में मी जिसे हाथ से नहीं जाने देना चाहता, उसने श्राज बीच बाजार उसे नीलाम करने की कोशिश की ।” “बखिर कुछ बताइये तो सही, मेरे हाथ-पॉव ठण्दे हो रहे हैं।” घनीराम ऑगन में बरामदे से उतरनें वाली सीढीपर बैठ गया, ऐसा लगता था मानों व भ्रन्दर से बिल्कुल टूट गया हो। उसकी पत्नी पति की पगडी गोद में लेकर नीचे फशे पर बैठ गई श्र उसके उतरे हुए; चेहरे की ओर '्यानसे देखने लगी । घनीराम बोला-- मैं उसे अलग कर दूँगा । घर में नही रहने दूँगा । वह जानता है, मेने कभी काले बाजार में कोई दवा नहीं बेची, किन्तु वह बदमाश दवा दुकान के झन्दर रखकर ग्राहक को कहता है बाजार से मैंगवाकर देनी पड़ेगी, दाम ज्यादा लगेंगे । इतना नहीं जानता कि काले बाजार का माल खाने से खून काला हो जाता है, दिल काला दो जाता है, मुंह काला दो जाता है । मेरे पास अगर पिस्तोल होता तो उसे गोछी मार देता ।”




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now