सच्ची शिक्षा | Sachchi Shiqsaa
श्रेणी : शिक्षा / Education
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
369
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९
तीसरा काल
२२. सोलहसे पच्चीस वषके समयको मैं तीसरा काल मानता हूँ ।
अुस काकमें प्रत्येक युवक और युवतीको अुसकी जिच्छा और स्थितिके
अनुसार शिक्षा मिले ।
२३. नो वषके बाद आरंभ हनेवाली शिक्षा स्वावलम्बी होनी
चाहिये । यानी विद्यार्थी पढ़ते हुआ असे अुयोगोंमें ठगे रहें, जिनकी
आमदनीसे शालाका खच चले ।
२४. शालामें आमदनी तो पहलेसे ही होने लगे । किन्तु शुरूके
वषोमें खचे पूरा होने लायक आमदनी नहीं होगी ।
२५. दिक्षकोंको बड़ी-बड़ी तनखाहें नहीं मिल सकतीं, किन्तु ये
जीविका चलाने लायक तो. होनी ही. चादियें । शिक्षकमें सेवाभावना
होनी चाहिये । प्राथमिक शिक्षाके लिअे कैसे भी दिक्षकसे काम चलानेका
रिवाज निन््दनीय है । सभी शिक्षक चरित्रवान होने चाहियें ।
२६. शिक्षाकें लिभे बड़ी और खर्चीठी जिमारतोंकी - ज़रूरत
नहीं है ।
(२७. भंप्रेजीका अभ्यास भाषाके रूपमें ही हो सकता है. और
अुसे पाम्यकममें जगद मिलनी चाहिये । जेसे हिन्दी राष्ट्रभाषा है,
वेसे ही भंग्रेजीका अपयोग दूसरे राष्ट्रों साथके व्यवहार और व्यापारके
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स्त्री -दिक्षा
२८. ल्ियोंकी विशेष शिक्षा कसी और कहाँँसे शुरू हो, जिस
विषयमें मैंने सोचा और लिखा है, तो भी जिस बारेमें किसी निश्चय
पर नहीं पहुँच सका हूँ । यह मेरा दृढ़ मत है कि जितनी सुविधा
पुरुषको मिलती है, अुतनी ख्रीको भी मिलनी चाहिये । और विशेष
सुविधाकी ज़रूरत हो, वहाँ विशेष सुविधा भी मिलनी चाहिये ।
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