कला - विद चित्रकार डा॰ एस॰ बी॰ लाल सक्सेना का कला में योगदान | Kala - Vid Chitrkar Dr S.b Lal Seksena Ka Kala Shikshan Men Yogadan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
317 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दूसरों का सहयोग न लेकर खुद संघर्ष करना चाहिये। क्योंकि इससे
स्वाभिमान जीवित रहता है। इन सब बातों का सरन की माँ पर इतना गहरा
प्रभाव पड़ा कि वह कोठी को त्यागकर शहर में किराये पर मकान लेकर
रहने लगीं। क्योंकि अधिक पढ़ी लिखीं न होने के कारण उन्हें कहीं पर
नौकरी मिलना कठिन था। इसलिये वे शुरू में कपड़ों के खिलौने बनाकर,
पुराने कपड़ों की गुड़िया बनाकर और धागे के बटन बनाकर बाजार में
दुकानदारों को देने लगी। इन दिनों बहुत अधिक मंहगाई नहीं थी। छोटे से
काम में भी उनको छः-सात रूपये महीने की आमदनी हो जाती थी। जिसमें
माँ एवं बेटे को आराम से रोटी मिल जाती थी। अब सरन का दाखिला भी
अविनाशी सहाय आर्य इंटर कॉलेज, एटा में करा दिया गया। क्योंकि सरन
5वीं तक एक अच्छे स्कूल में पढ़े थे। उनकी पढ़ने लिखने में बहुत रूचि थी
कक्षा छटवीं की वार्षिक परीक्षा में वे अरसी प्रतिशत अंकों से उर्तीण हुये।
जिसके फलस्वरूप आगे की कक्षाओं में इनकी पूरी फीस माफ कर दी
गयी।'
यह कठिनाई का वह वक्त था, जब दो वक्त की रोटी का इन्तजाम
होना भी कठिन था। लेकिन सरन की माँ ने साहस एवं ईमानदारी से अपना
जीवन आगे बढ़ाया। समय दौड़ता हुआ आगे निकलने लगा और
परिस्थितियों ने संघर्ष के लिए इतना बाध्य कर दिया, कि सरन की मां ने
किसी भी रिश्तेदार से मदद लेने की बात को अस्वीकार कर दिया और
. निश्चय किया कि सरन का पालन पोषण व शिक्षा को परिश्रम करके ही पूरा
करेंगी और उन्होंने ऐसा करके भी दिखाया। अच्छे व्यक्ति का साथ ईश्वर
! डाण एसण्बी0एएल0 सक्सेना ने स्वयं बताया
शोध प्रबन्ध 2008,बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी
User Reviews
No Reviews | Add Yours...