हिंदी कथा कोष | Hindi Katha Kosh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
hindi katha kop  by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
श्श्] लाम । फरवेद में इनके नाम पर दो छचाएँ तथा एक सूक्त प्राप्त होते हैं । इंट्रचमेस-महा भारतकालीन मात्तवा के राजा जो प्रसिद्ध . गज 'श्वस्थामा के स्वामी थे और कौरवों के पद्ष में लड़े थे । इंद्रसावर्यि-मन्चु का एक नामांतर । भागवत के श्रनुसार ये चौदहवें मन्वंतर के सन्चु थे । इंद्रसेन-१. युधिष्ठिर के सारथि का नास । २. फऋपभदेव तथा जयंती के पुत्र का नाम । ३.राजा नल का पुत्र । ४. मादिप्सती के एक राजा । १. राजा कूर्च का पुत्र । ६. सहासारतकालीन एक कौरवपक्षीय राजा । इंद्रसेना-राजा नल की कन्या । इचालव-एक ऋषि का नाम जो कक शिप्य परंपरा में न्यास के शिप्य माने जाते हैं । इच्चाकु-१. वैवस्वत मजु के पुन्न तथा. सूर्यवंश के अथम राजा, जिन्होंने झयोध्या सें कोसल राज्य की स्थापना की थी । असिद्ध राजा रासचंद्र जी इन्हीं के वंशज थे । मनु की छींक से इनकी उत्पत्ति होने के कारण इनका नाम इषवाकु॒ पढ़ा । इनके सौ पुत्र कहे जाते हैं जिनमें चिकुक्षि, निमि और दंड चिशेष प्रसिद्ध हैं । शकुनि छादि ध्ुनके पचास पुन्न उत्तरापथ के तथा शेप दुक्षिणा- पथ के राजा दुए थे । २. एक दूसरे हषवाकु काशी के राजा हुए थे जिनके पिता का नाम सुचंधघु था । इनकी उत्पत्ति दछुदंड से दोने के कारण इनका नाम इृघवाऊ पढ़ा । इडा-१. वैवस्वत मनु की कन्या का नाम जिसकी उत्पचि प्रजासप्टि के झभिग्राय से यशकुण्ड में ढाले हुए हविप्य से हुई थी । इसका चिवादद बुध के साथ छुआ जिससे पुरूरवा नामक पुत्र उत्पन्न दुआ । दे० 'पुरूरवा' । शतपथ आाह्मण के झनुसार इढा की उत्पत्ति उस यज्ुकुण्ड से हुई थी जिसका निर्माण सनु ने संतानोत्पत्ति के संकरुप से किया था और उसका पाणिय्रहण मिन्नावरुण ने किया था । २. सानव शरीर की एक नाढी का नाम जिसका प्रयोग संस्कृत के योग साहित्य तथा हिंदी के संत साहित्य में प्रायः सिलता है । इढ़ा, पिंगला तथा सुपुग्ना नाढ़ियों को क्रमश: गंगा, यमुना तथा सरस्वती का अतीक माना गया है । इड़पिड़ा-दे* 'इलविला? । इषध्सजिह्न-प्रियघ्रत तथा चहिंग्मती के दस पुत्रों में से हितीय का नाम जो प्लच्त द्वीप के स्वासी थे । इरावत-झजुन के एक पुन्न का नाम जिसकी उत्पत्ति ऐरा- चत नाग की विधवा कन्या उलूपी से हुई थी । नागशत्ु गरुड द्वारा जासाता का चध दोने पर एंरावत ने झपनी पुन्नी को अजुन के हाथ समर्पित कर दिया । इसी के गर्भ से इरावत (अथवा इराचान) की उत्पत्ति हुई जिससे मद्दाभारत कु में कौरवों का प्रन्नेर संदार किया और अंत में दुयोधन-पक्षीय झायेश्वंग नामक राक्षस द्वारा सारा गया । इरावती-रावी नदी का नामांतर । इसका यूनानी नाम दिड्रायोटीस है । चर दर [ इंद्रवमेन-उकथ इतसराज-कदेम अजापति के पुन्न तथा वह्लीक देश के पुक प्राचीन राजा । इनके संबंध में कथा प्रचलित है कि एक यार ये शिकार खेलते-खेलते ऐसे वन से पहुँच गए जहाँ जाने पर पुरुप खी में परिवतित हो जाता था । फलतः समस्त सेना सृद्दित अपने को _ ख्री रूप में पाकर वे बड़े चिंतित हुए और उस स्वरूप से मुक्ति पाने के लिए शिव जी की आराधना करने लगे । किंतु शिवजी ने श्रपनी झससथता प्रकट की । निदान पार्वती की तपस्पा करने पर उन्हें यांशिक सफलता घास हुई, जिसके अनुसार वे र्क महीना पुरुप घर एक महीना ख्री के रूप सें “रहने लगे । इलविला-एक देवकन्या जिसकी उत्पत्ति झप्सरा थलंबुपा तथा तृणविदु से सानी जाती है । एक मत से यह विश्रवा की पत्नी घर कुबेर की जननी मानी जाती है । दे० कुबेर” मतांतर से यह पुलस्त्य की पत्नी तथा चविश्रवा की जननी सानी जाती है । दे० 'पुसस्त्य । इलवुत-छसीघ के नौ पुन्नों में से एक जो जंदूद्वीप के स्वामी माने जाते हैं । इला-वैवस्वत सनचचु तथा श्रद्धा की कन्या । मनु ने पुन्नोत्पत्ति की लालसा से यज्ञ किया कितु उनकी भायां श्रद्धा कन्या चाहती थीं जिसके लिए वे नियमपू्वक दुग्धपान करके रहती थीं और दोता से कन्या के लिए ही प्रार्थना कर- चाती थीं । फल-स्वरूप इला नामक कन्या की उत्पत्ति हुईं । मनु ने चसिप्ठ से झपने दुगख का निवेदन किया जिनकी ार्थना से घ्ादि पुरुष ने दला को ही पुरुप-रूप में परिवतित कर दिया जो सुदुन्न के नाम से मसिद्ध हुआ । दे० 'सुचुन्न' तथा 'वैवस्वत” । जिन इलापत्र-द्वादश प्रधान नागराजों में से एक जिन्हें झप्ट- कुन्ी समद्दासर्प या. महानाग भी फहते दे । भक्तमाल के झनुसार ये भगवान, के मंदिर के ह्वारपाल हैं 'और इनकी सम्सति के विना कोई उसमें प्रवेश नहीं पा सकता । श्रत्तः सगवान्‌ का सान्निध्य प्राप्त करने के लिए पहले इन्हें मसन्न करना आवश्यक हे । इलावृत्त-सेर पर्वत के मध्य में स्थित एक चन जर्ाँ शिव का चास कहा जाता है । इष्टिपसप-यज्ञ की हवन सामग्री के चीटों का साम्रूहिक नाम । व्यापार साम्य के कारण यज्ञ सामग्री चुराने वाले राक्षसों को यह संज्ञा दी गई थी । इंश-१. शिव का नामांतर । दे० 'शिव' । २. एक उप- निषद्‌ का नास । इेशान-शिव अथवा रु का रूपान्तर जो उत्तरपूरव कोण के स्वासी माने गए हैं । इंश्वरकष्णु-सांख्य-कारिका के प्रणता एक मसिद्ध छाचार्य का नास। इेश्व्रसी-नासा जी के अनुसार एक प्रसिद्ध राजवंशीय वैष्णव भक्त । उकूथ-स्वाहा के पुन्न का नाम । विप्णुपुराण के मत से ये




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now