थे वराह पुराण फॉसिक्युलुस | The Varaha Purana Fasciculus-i
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
948
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दितीयीध्याय: । श्द्
ही
तत्र प्रियब्रती राजा महायज्वा तपीबल: ॥ ५६ | ः
स चेट्ा विविधे्यज्षेविंपुसैभूरिदचिरी: ।
सप्तचीपेषु संस्थाप्य भरता दी न् सुताबरिजान् |
. स्वयं विशालां वरदां गत्वा तेप्रे मचत्तप: ॥ ध्रू७ ।
तस्मिन् स्थितस्थय तपसि राज्ञो वे चक्रवर्ततिन: ।
उपयाब्ारदस्तत्र# दिटकुईस्सचारिणम् ॥ श्रू८ |
स दृट्ा नारदं व्यास ज्वलज्ञास्करतेजसम् ।
अस्युत्यानेन राजेन्द्र उत्तस्ती चर्षितस्तदा ॥ ४. |
तस्यासनच्' पाद्यद्र सम्यक् छृत्वा निवेद्य थे ।
स्वागतादिभिरालापे: परस्परमवाचताम् ॥ ६०!
कघान्ते नारदं राजा पप्रच्छ ब्रह्मवादिनम् ॥ ६१ ।
प्रिबब्रत उवाच |
भगवन् किच्चिदाथय्येमेतस्मिन् छतसंजिते ।
युग दृष्ट युतं चापि तन्मे कथय नारद ॥ ६२ |
नारद उवाच ।
आयय्यमेकं दृष्ट से तच्छुणुष्व प्रियव्रत ।
ज्ञस्तने:द्नि राजेन्द्र श्बेताख्यं गतवानहम् ॥ द३ 1
द्ीप॑ तच सरोा इटं फलपडहजमालिनमूक$ ।
सरसस्तस्य तीरे तु कमारीं छथधुलेचचनाम् ॥ &8४ |
+ , उपेग्रादिति भूवेलिंड आर्पम् ।
तस्थासने चेंति (ग) ।
फुन्नलदजमास्थितमिति (ख) |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...