श्री भागवत दर्शन भागवती कथा भाग - 2 | Shri Bhagwat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 2

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Shri Bhagwat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 2  by श्रीप्रभुदत्तजी ब्रह्मचारी - Shree Prabhu Duttji Brhmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सन्त-वियोग | रही हं। आचारयें महाराज सरलता के साय कहते-''नहीं मिल रही है, तो जाने दो भंथा, जो मिल रही है उसे हो गाड़ी में छादो 1” गौओ पर भूछें पड़ने ठगी । जल्दी-जल्दी पूजा करके बालभोग बंटने लगा । रसोई और पूजा के वर्तन बांध-वाँघ कर गाड़ियों पर लदने लगे । भाध्म में बड़ी खटर-पटर मच गई। कोई इधर से उधर दौड़ता, कोई बलों को लाता । सर्वत्र शोघ्ता हो रही थी । सभी साधुओं के विस्तर वैँधने लगे । कोई कहता--गौओं को और गाड़ियों को हॉक दी, जिससे धीरे-धीरे आगे चलें ।” दूसरा जोर देकर कहता--''हॉक दो हॉक दो, तो कह रहे हो, अभी महाराज के आसन का सब सामान तो वहीं पड़ा है ।” इस पर वह दूसरे से कहता--“अजी, तुम वातें पीछे कर लेना, पहिने महाराज जी का सामान ती गाड़ी में लादो । इस पर कई साधु दोड़ जाते । इधर-उधर के सामान को जाकर रख देते ' गाँव के वाल बच्चे, ख्री, पुरुप सब एकव्रित हो गये थे। बच्चों को साधुओं के जाने का तो कोई दुःख नहीं था, उन्हे सबसे बड़ा दुख यही था, कि अब करू से दोनों समय साद न मिला करेगा । ख्री, पुरुष खड़े-खड़े आँसू वहा रहे थे। महाराज उन्हें कुछ ऐसे ही समका रहे थे। मुकसे यह हृश्य 'नहीं देखा गया, मैं भागकर अपनी माँ के पास चला गया 1 जब से महात्मा आये थे, आज ही मैं अपने भोंपड़े में गया । उन ब्राह्मण देवता केघर से थोड़ी दूर एकान्त में ही हमारा घर था । घर क्या, मिट्टी को कच्ची दिवाल पर फूस का एक छप्पर था । उसा में माँ बेटे दोनों रहते थे । मुह




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