धाँसू | Dhansu

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Dhansu by गोविन्द मिश्र - Govind Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जनन्तसत्र / १७ हूं ठीक है । बन्द करा डासो, अच्छा है बंठे-बेठें खाने को मिलेगा, पर वे बन्द नहीं कराते । कह हैं तुम्हे शहर से बाहर निकाल दिया जायेगा 1 मैंने कहा, भइया जहाँ पढ़ने जाता हूँ बह स्कूल शहर से बाहर है। वे कहते हैं बाहर निकालकर तुम्हारी करतूतों को कोन याद रखेगा” “तुम्हें यही रख कर बिसा जायेया । मैंने कहा, भइया मैं खुद वाहर चला जाता पर यहनौकरी इसी शहर की है । तबादले भी साले इसी चौहही के भ्न्दर-ग्रन्दर होते हैं। वे कहते हैं, यह राव तो ऊपरी इन्तज्ञाम है, तुम्हारी नौकरी तो कब की छूट चुकी । पागलों को कोई नौकरी पर रखता है ! शिक्षा सुपरडेंट कहता है--'पार, लोग तुम्हें पागल कहते है पर तुम्हारे स्कूल का रिजह्ट हमेशा शत-प्रतिशत रहता है झगर मेरा दिमाग खराब है तो वे मुग्रायनें में में मरी ग्तती क्यो नहीं मिकाल पाते ! भ्रसल में सब मिले है । शिक्षा सुपरडंट उनका 'है । प्रभारी अधिकारी भी उन्हीं वा श्रादसी है । उनका जो चपरासी भरा वहें श्रा गया है ग्रव हमारे स्कूल में, सारे किस्से बताता है। क्ितिज,बावू म्यूनिस्पेलिटी के मेम्वर थे शरीर शिक्षा के इन्वार्ज थे । खूब पंसा कमाया थी । जब बोर्ड टूट गया तो सारी फाइलें प्रभारी अधि कारी को मालूम हो गयी । क्षितिज बादू भ्रब मस्खा लगाते रहते हैं । मे नहीं चाहते कि पोलें खु्लें भ्रौर गला चुनाव गड़बड़ापे । भई पूरा का पूस दल है उनका, लगा हुभा है । भारत के जितने सेंगढ़े-्लूने हैं सब मुझे दिखाये जाते है । मेरे स्कूल के सामने फौजदारी करा दी जाती है। मैं तो स्कूल बन्द करा देता हूँ । मेरा सहायक कहता है कि झाप हेडमास्टर हैं, जब चाहें स्कूल बन्द करा सकते हैं । वह चाहता है कि इसी तरह मेरी शिकायत हो जाये भौर मैं अलग कर दिया जाऊं, ताकि वह हेड हो सके | ,. वे कहते हैं, तुस' मौका चूक गये, साले को तीन चांस दिये, किसी चार उंगली से ही इशारा कर देता 1 नत्थू कहता है--'मास्टर साहब, भाप दिल्‍ली चले जाइए मैं क्यो जाऊँ दिल्‍ली, जब दिल्‍ली से ही यहाँ लोग ग्राति हैं ! पिछले महीने हो जाने कितने मन्यी झामे ! बडी-बड़ी मीदिगें करते हैं, लाउडस्पीकर पर बोलते हैं । महंगाई हटाने के लिए जनता का साथ चाहते हैं! मैं तो कितना चाहता हूं कि सेरा कोई साम




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