शासक | Shasak

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Shasak by रामप्रसाद त्रिपाठी - RamPrasad Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गे! की घूणा और दूसरे हिक़ारत ।” ( पद ८८ “प्रजा में राजा के. प्रति घुणा तब उत्पन्न होती है जब वह उनकी जायदांद व्मौर खियों पर दाँत गड़ाता है।” (प्र० १०० ) राजा को तो “बपना चाल-चलन ऐसा रखना चाहिए जिससे उसके कामों से शान-शौकत, साहस, गम्भीरता और शक्ति भलका करे ।” (प्र० १०१) “सुशासित राज्यों ब्और विचारवान्‌ राजाओं ने सदा इस बात का ध्यान रक्‍्खा है कि एक तो 'झमीरों 'औंर सरदारों को इतना तंग न किया जाय कि वे जान पर खेलने को उतारू हो जायें और दूसरे जनता को सन्तुष्र और प्रसन्न रखने में कसर न की जाय ।” (प्र० १०४) “राजा को यह भी चाहिए कि वह शुणियों का 'छादर करे और ललित कला से प्रेम रखे । इसके सिवाय उसे चाहिए कि चह ापनी प्रजा को शान्तिपूबंक व्यापार, खेती या अन्य सनमाने काम करने को उत्तेजित करे ।” उसे चाहिए कि “वह सबसे मिलता रहे और उदारता और दया-पूर्वक व्यवहार करे ।” ( १२९६-२७ ) यद्यपि “प्रि्स” की रचना सन्‌ १५१३ में हुई थी, तथापि उसका प्रकाशन मेकियावली के जीवन-काल में न हो सका । उसने जिस '्ाशय से उसकी रचना की थी वह सफल न हो सका । इटली की राजनीतिक व्यवस्था पर उसका कोई विशेष प्रभाव न पड़ा । किन्दु यह तो अवश्य हुआ कि उसकी विचार-धारा 'झौर सिंद्धान्तों ने योरप का दृष्टिकोण वहुत कु बदल दिया । इसी कारण वह घ्याघुनिक राजनीति का विधाता माना जाता है। उसके सिद्धान्तों की न्यावदारिकता का सयसे वड़ा प्रमाण यह है कि 'छाज दिन




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