महान पाश्चात्य शिक्षा - शास्त्री | Mahan Pashchaty Shiksha - Shastri
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
83 MB
कुल पष्ठ :
191
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)7 सहान् पाइ्चात्य शिक्षा-शास्ती
प्लेटो के शिक्षा-सम्बन्धी सिद्धान्त उसकी दो प्रसिद्ध पुस्तकों में सिलते, हैं । वे
पुस्तकें “दी रिपब्लिक”” (16 हि८प०00) श्र
शिक्षा सम्बन्धी हैं । प्लेटो की कृतियाँ वार्तालाप के रूप में हैं । वार्वालाप वास्तव
चना में नाटकीय और घटना; ब्वंग्य; नथा सजीव चरित्र-नवितरण से
७ न्रोतप्रोत हैं । श्रविकांश वार्तालापों में सुख्य अंश छुकरात द्वारा
कहलाया गया है जिनमें प्लेटो ने श्रपने दार्शनिक विचारों को प्रकट किया है । 'दि
रिपन्लिक' साहित्य एवं विचार दोनों दृष्टियों से एक महान पुस्तक है श्रौर इसने
संसार के झ्रधिकांश दाशंनिकों; राजनीदिशों तथा शिक्षाशाख्ियों पर प्रभाव डाला है।
रूसो ने ठीक ही कहा है कि दो रिपब्लिक' शिक्षा शास्त्र का श्रत्युत्तम गवेघणा-प्रंथ है)
«दी लाज़' जिसे प्लेटो ने श्रपनी इडावस्था में लिखा था; उसकी अत्यन्त बृद्ददू गूढ़
और व्यावहारिक कृति है । इसमें नीतिशास्त्र त्रौर शिक्षाशाख्र दोनों पर उसके श्रस्यन्त
परिपक्व विचार संप्रह्दीत हैं ।
प्लेटो का दर्शन
प्लेटो के शिक्षा-सम्बन्धी विचार उसके दार्शनिक विचारों पर श्ाधारित हैं ।
उसके शिक्षा-सम्बन्धी विचारों को मली-माँति तथा श्रपनी प्राकृतिक श्रवस्था में श्रौर
दारशंतिक विचारों पूर्ण एवम् शुद्ध रूप में शात करने के लिए उसके दार्शनिक
का सहत्त्व सिद्धान्तों के विकास का श्रष्ययन करना झावश्यक है; श्रस्यथा'
हम उसके शिक्षा-सम्बन्धी विचारों के वास्तविक महत्व हा
समझ सकेंगे । श्रतप्व हम प्लेटो के प्रधान दार्शनिक संकेतों पर विचार करेंगे ।
प्लेटो को एक श्रादर्शवादी दाशंनिक की संज्ञा दी गई है क्योंकि उसके
विचार से “विचारों का जगत ही वास्तविक तौर सत्य है” । उसके इस विचार-प्रियता
दि के कारण, उसके दर्शन के कुछ विद्यार्थी उसे 'विचारवादी
. झ्रादर्शवाद कहना उचित समसते हैं। उसका यह विचार था कि यह
भौतिक जगत जिसको हम प्रत्यच्ष ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा देखते, स्पर्श करते एवम श्रनु-
मिव करते हैं, सिथ्या अम मात्र है। यह सम्पूर्ण प्रत्यक्ष जगत् नरुटि दोष से पूर्ण
... बुतावस्था में है । अतएव प्लेटो एक ऐसे सत्य एवम् महिमामंडित जगत् की करूपना
करता है जिसमें वास्तविक चीजें प्राप्त की जा सकती है ! इस जगत् को वह “विचारों
बी दुनियाँ' कहता है। इस जगत् में हम उन समस्त वास्तविक एवम. दर वस्तुओं
_ को प्राप्त क्र सकते हैं. जिसकी प्रतिछ्लाया हम प्रत्यक्ष जगत् में देखते हैं। ये बस्त॒यें
क
'बदी लाज़! (176 1.2ज़5) ४ ल्
अपने में पूर्ण, श्रपरिवर्तन शील; चिरंतन एवम् शाश्वत हैं । श्रतरव प्लेटो के वित्वार ट
कक
नननलााीो' फैन. ध्य .नेफ
User Reviews
No Reviews | Add Yours...