महान पाश्चात्य शिक्षा - शास्त्री | Mahan Pashchaty Shiksha - Shastri

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Mahan Pashchaty Shiksha - Shastri by पी॰ एस॰ नायडू - P. S. Nayadu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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7 सहान्‌ पाइ्चात्य शिक्षा-शास्ती प्लेटो के शिक्षा-सम्बन्धी सिद्धान्त उसकी दो प्रसिद्ध पुस्तकों में सिलते, हैं । वे पुस्तकें “दी रिपब्लिक”” (16 हि८प०00) श्र शिक्षा सम्बन्धी हैं । प्लेटो की कृतियाँ वार्तालाप के रूप में हैं । वार्वालाप वास्तव चना में नाटकीय और घटना; ब्वंग्य; नथा सजीव चरित्र-नवितरण से ७ न्रोतप्रोत हैं । श्रविकांश वार्तालापों में सुख्य अंश छुकरात द्वारा कहलाया गया है जिनमें प्लेटो ने श्रपने दार्शनिक विचारों को प्रकट किया है । 'दि रिपन्लिक' साहित्य एवं विचार दोनों दृष्टियों से एक महान पुस्तक है श्रौर इसने संसार के झ्रधिकांश दाशंनिकों; राजनीदिशों तथा शिक्षाशाख्ियों पर प्रभाव डाला है। रूसो ने ठीक ही कहा है कि दो रिपब्लिक' शिक्षा शास्त्र का श्रत्युत्तम गवेघणा-प्रंथ है) «दी लाज़' जिसे प्लेटो ने श्रपनी इडावस्था में लिखा था; उसकी अत्यन्त बृद्ददू गूढ़ और व्यावहारिक कृति है । इसमें नीतिशास्त्र त्रौर शिक्षाशाख्र दोनों पर उसके श्रस्यन्त परिपक्व विचार संप्रह्दीत हैं । प्लेटो का दर्शन प्लेटो के शिक्षा-सम्बन्धी विचार उसके दार्शनिक विचारों पर श्ाधारित हैं । उसके शिक्षा-सम्बन्धी विचारों को मली-माँति तथा श्रपनी प्राकृतिक श्रवस्था में श्रौर दारशंतिक विचारों पूर्ण एवम्‌ शुद्ध रूप में शात करने के लिए उसके दार्शनिक का सहत्त्व सिद्धान्तों के विकास का श्रष्ययन करना झावश्यक है; श्रस्यथा' हम उसके शिक्षा-सम्बन्धी विचारों के वास्तविक महत्व हा समझ सकेंगे । श्रतप्व हम प्लेटो के प्रधान दार्शनिक संकेतों पर विचार करेंगे । प्लेटो को एक श्रादर्शवादी दाशंनिक की संज्ञा दी गई है क्योंकि उसके विचार से “विचारों का जगत ही वास्तविक तौर सत्य है” । उसके इस विचार-प्रियता दि के कारण, उसके दर्शन के कुछ विद्यार्थी उसे 'विचारवादी . झ्रादर्शवाद कहना उचित समसते हैं। उसका यह विचार था कि यह भौतिक जगत जिसको हम प्रत्यच्ष ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा देखते, स्पर्श करते एवम श्रनु- मिव करते हैं, सिथ्या अम मात्र है। यह सम्पूर्ण प्रत्यक्ष जगत्‌ नरुटि दोष से पूर्ण ... बुतावस्था में है । अतएव प्लेटो एक ऐसे सत्य एवम्‌ महिमामंडित जगत्‌ की करूपना करता है जिसमें वास्तविक चीजें प्राप्त की जा सकती है ! इस जगत्‌ को वह “विचारों बी दुनियाँ' कहता है। इस जगत्‌ में हम उन समस्त वास्तविक एवम. दर वस्तुओं _ को प्राप्त क्र सकते हैं. जिसकी प्रतिछ्लाया हम प्रत्यक्ष जगत्‌ में देखते हैं। ये बस्त॒यें क 'बदी लाज़! (176 1.2ज़5) ४ ल्‍ अपने में पूर्ण, श्रपरिवर्तन शील; चिरंतन एवम्‌ शाश्वत हैं । श्रतरव प्लेटो के वित्वार ट कक नननलााीो' फैन. ध्य .नेफ




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