अमिताभ | Amitaabh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२. कौन गा रहा है ? | ३ दिन-दिन कांति, तेज, बल श्रोर बुद्धि में बढ़ने लगा, पर उसमें बालकों की फ्रीड़ा-चपलता कभी नहीं देखी गड़े । जब देखो उसे, तभी न-जाने विचार की किम गहराई में डूबा हुभ्ा रहता था । कुछ भूला-सा, जाने किसे. स्मरण करता था । कुछ स्खोया-सा जाने किसे टू ढने की चेष्टा करता था । महारानी प्रजावती श्रपने समस्त सुख श्र स्वाथ की श्राहुति देकर उस राजकुमार का प्रतिपालन कर रही थी । एक पुत्र उसके भी हो गया था । उसका नाम था नंद । प्रजावती ने कभी भूलकर भी किसी बात में नंद को प्रथम स्थान नहीं दिया । सिद्धार्थ की वेराग्य की श्रोर प्रेरणा करनेवाले वे चार निमित्त महाराज शुद्धोदन के मस्तिष्क में जाकर बस गए थे । वह रात-दिन इसी चिंता में रहते थे, किस प्रकार वे रोके जा सकगे । इसके लिये बड़ी दूरदर्शिता से उन्होंने नाना प्रकार के प्रबंघ किए श्र करते रहे । उन्होंने' दुर्ग के प्रैचीर के भीतर एक श्रौर दीवार बनवाड़े । उस दीवार से राजभवन, उसके निकट के उपवन का अधिकांश श्र एक सरोवर को घेर लिया । उन्होंने दुर्ग के भीतर जितने बूढ़े कमंचारी थे, उन सबको वृत्ति नियतकर उन्हें छुट्टी दे दी । दुग के भीतर भूल से कभी कोई निमित्त दिखलाई दे जाता, पर राजभवन की सीमा के भीतर कभी कोई नहीं । एक दिन महाराज ने खिंता के भार से विनत होकर प्रजावती से




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