अमिताभ | Amitaabh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
394
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२. कौन गा रहा है ?
| ३ दिन-दिन कांति, तेज, बल श्रोर बुद्धि में बढ़ने लगा,
पर उसमें बालकों की फ्रीड़ा-चपलता कभी नहीं देखी गड़े ।
जब देखो उसे, तभी न-जाने विचार की किम गहराई में डूबा हुभ्ा
रहता था । कुछ भूला-सा, जाने किसे. स्मरण करता था । कुछ
स्खोया-सा जाने किसे टू ढने की चेष्टा करता था ।
महारानी प्रजावती श्रपने समस्त सुख श्र स्वाथ की श्राहुति
देकर उस राजकुमार का प्रतिपालन कर रही थी । एक पुत्र उसके भी
हो गया था । उसका नाम था नंद । प्रजावती ने कभी भूलकर भी
किसी बात में नंद को प्रथम स्थान नहीं दिया ।
सिद्धार्थ की वेराग्य की श्रोर प्रेरणा करनेवाले वे चार निमित्त
महाराज शुद्धोदन के मस्तिष्क में जाकर बस गए थे । वह रात-दिन
इसी चिंता में रहते थे, किस प्रकार वे रोके जा सकगे । इसके लिये
बड़ी दूरदर्शिता से उन्होंने नाना प्रकार के प्रबंघ किए श्र करते रहे ।
उन्होंने' दुर्ग के प्रैचीर के भीतर एक श्रौर दीवार बनवाड़े । उस
दीवार से राजभवन, उसके निकट के उपवन का अधिकांश श्र एक
सरोवर को घेर लिया ।
उन्होंने दुर्ग के भीतर जितने बूढ़े कमंचारी थे, उन सबको वृत्ति
नियतकर उन्हें छुट्टी दे दी । दुग के भीतर भूल से कभी कोई
निमित्त दिखलाई दे जाता, पर राजभवन की सीमा के भीतर कभी
कोई नहीं ।
एक दिन महाराज ने खिंता के भार से विनत होकर प्रजावती से
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