कृषि एवं ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंको की भूमिका | Krishi Evm Gramin Vikas Karyakramon Men Kshetriy Gramin Bainko Ki Bhumika

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Krishi Evm Gramin Vikas Karyakramon Men Kshetriy Gramin Bainko Ki Bhumika  by अनीता देवी चौरसिया - Anita Devi Chaurisiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ फ अध्यक्षता म॑ भारतीय ग्रामीण सर्वेक्षण समिति का गठन किया। इस सागिति की रिपोर्ट 1954 से प्रकाशित हुयी' | समिति की सिफारिशों के अनुसार कृषि को उदारतापूर्वक ऋण सहायता देने के लिए रिजर्व बैंक द्वारा दो कोषों राष्ट्रीय साख दीर्घकालीन कोष तथा राष्ट्रीय कृषि साख (स्थरीकरण कोषो की रथापना की गयी | इन कोषों से राज्य सरकार की गारण्टी पर कग्पू विकास बैंकों ग्रामीण बैंको का दीर्घकालीन तथा मध्यकालीन ऋण तथा कषि साख दीघकालीन कोष से राज्य सरकारों को सहकारी बैंक के अंश खरीदने कृषि विकास के उद्देश्यों रे ग्रामीण बैकों को मध यकालीन ऋण प्रदान करने तथा केन्द्रीय भूमि विकास बैंकों के ऋणपत्र खरी राष्ट्रीय कृषि साख स्थरीकरण कोष की सहायता से ग्रामीण बैको को सूखे बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के समय अल्पकालीन ऋणों को मध्यकालीन ऋणों में परिवर्तित करने की सुविधा दी जाती रही है। ग्रामीण साख के क्षेत्र मे भारतीय रिजर्व बैंक का यह महत्वपूर्ण योगदान है| भारतीय ग्रामीण साख सर्वेक्षण समिति के अनुसार भारत मे ग्रामीण क्षेत्रों मे कृषि साख उपलब्ध कराने हेतु सहकारी संस्थाओ का व ग्रामीण बैको का विकास किया गया है । यद्यपि वित्तीय संस्थाओ के रूप मे सर्वप्रथम व्यापारिक बैंको की स्थापना की गयी, किन्तु कृषि विकास की दृष्टि से इनका कार्य संतोषजनक नहीं रहा | व्यापारिक बैकों की साख एवं ऋण नीति कृषि के दीर्घकालीन विकास की दृष्टि से उपयुक्त न थी | इसका कारण भारतीय कृषि का असंगठित एवं जीवन निर्वाह स्वरूप था। व्यापारिक बैंको ने राष्ट्रीयकरण से पूर्व कृषि क्षेत्र को साख की दृष्टि से उपेक्षित रखा और बैंक की शाखाओं का विस्तार अधिकांशत: उन्हीं स्थानों मे हुआ जो विकसित थे इनके द्वारा साख. सुविधायें केवल बड़े उद्योगो तथा पूँजीपतियों को प्रदान की जाती थी | ग्रामीण क्षेत्रों तथा कृषकों के विकास की इनके द्वारा उपेक्षा हुयी जबकि भारत जैसे कृषि प्रधान देश मे विकास के लिए कृषि विकास तथा कृषकों की आर्थिक स्थिति मे सुधार आवश्यक है। बैंको के राष्ट्रीयकरण के पश्चात व्यापारिक बैंकों की ऋण नीति में व्यापक परिवर्तन हुए हैं। जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्र में कटीर उद्योग एवं छोटे व्यवसायों के साख के संदर्भ मे प्राथमिकता क्षेत्र के अन्तर्गत सम्मिलित किया दा




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