जिददू कृष्णमूर्ति के दार्शनिक चिन्तन के शैक्षिक निहितार्थ का आलोचनात्मक अध्ययन | Jiddu Krishnamurti Ke Darshanik Chintan Ke Shaikshik Nihitartha Ka Aalochanatmak Adhyayan

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Jiddu Krishnamurti Ke Darshanik Chintan Ke Shaikshik Nihitartha Ka Aalochanatmak Adhyayan  by कल्पना पाण्डेय - Kalpana Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कु प्रस्तुत अध्ययन की सार्थकता इस तथ्य के उजागर करने में भी स्पष्ट होगी कि आज के भौतिकवादी, वैज्ञानिक तथा मनोवैज्ञानिक उन्नति से पीड़ित मानव को दिशा बोध किस प्रकार से जे0कृष्णसूर्ति का शिक्षा दर्शन कर सकेगा। इसके साथ ही यह भी सिद्ध हो सकेगा कि किस प्रकार से वैदिक सत्य को नवीन कलेवर में आपने प्रस्तुत किया। जिससे आज के मानव को नई एवं भारतीय दिशा मिली। इसकी सार्थकता श्रीमदृभागवत्‌ गीता में व्यक्त श्रीकृष्ण जी की वाणी की सत्यत्ता की परिधि में आ जायेगा। उस समय आपका. उद्बोधन था कि यह ज्ञान नया नहीं है, वरन आदिकाल में उन्होंने इसे सूर्य को दिया था, परन्तु कालान्तर में यह लुप्त हो गया है| समस्या कथन किसी भी मनीषी के दार्शनिक चिन्तन को स्पष्ट करने के लिए उससे सम्बन्धित विभिन्‍न पदों ने एवं प्रत्ययों की व्याख्या निम्न प्रकार से करते है :- थ 4... दर्शन- दार्शनिक चिन्तन को समझने के लिए हमें पश्चिमी दर्शन एवं भारतीय दर्शन दोनो को के पर समझाना होगा क्योकि जे0कृष्णासूर्ति जी के जीवन पर दोनो का प्रभाव पड़ा है| . पश्चिमी दर्शन 1... प्राचीन काल “- प्राचीन काल में दार्शनिक विवेचन का श्रेय पश्चिमी जगत में यूनान को है। रोमन विचार का. भी आधार यूनानी विचार ही था। अतः प्राचीन दर्शन को “यूनानी दर्शन” के नाम से भी पुकारा जाता द री नी . है। प्राचीन काल में भी हम तीन विभाग विशेष रूप से देखते है। एक समय तो सुकसत से पूर्व का (८. बह . है और दूसरा सुकरात, प्लेटो तथा अरस्तू का, त्था तीसरा समय अरस्तू से बाद और मध्यकाल से... थे पूर्व का है|




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