श्री पंचास्तिकाय टीका भाग २ | Panchastikayteka Volume - Ii
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
268
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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आपने उप्त वक्त भी धेये रखा । आपके पुत्र छाठा निनेश्वादापत-
नीको अपनी माताकि स्रगवाप्त होनानेसे बहुत दुक्ख हुआ मगर
आप उनको भी हरवक्त यही कहकर सम्वोधते थे कि उपका वक्त.
बहुत अच्छा था, वह बड़ी भाग्यवान थी जो मेरे सामने स्रगकों
चली गई | अब मेरी जिन्दगीका भी कोई भरोसा नहीं, २-३
वर्ष और जीऊंगा। तुम होशियार हो और सेंसारकी अवश्था जानते
हो, किमीके मा बाप हमेशा वेंठे नहीं रहते हैं । इसके करीब १
साठ ब्राद वि० संवतू १९८२में आप पर एकाएकी फाछिम गिर
पड़ा नित्तकी वनहसे करीब १० महीने आप बीमार रहे वहुतसे
बेच हकीमोंका इरान किया गया, कोई फायदा नहीं हुआ | मिती
भादों सुददी १२ संवत् १९८५को ६७ बर्पक्री अव्यामें आपका
स्वगवाप्त दोगवा । बीमारीकी हाठतमें आपके परिणाम बहुत निर्मठ
रहे। रोजाना करीब ४ व ५ घंटे आप घर्मंचर्चा सुनते थे और अपने
कुटुवीननॉंकों रोजाना सम्बोधते थे कि तुम ढोग फिंकर किम
बातकी करते हो ? संप्ारनें जो भाया है बह एकदिन जरूर नायगा,
मेरा वक्त तो बहुत अच्छा दै । मैं गृहस्थके सब सुखों झा अनुभव
थोड़ार कर चुका | मेरे मनमें अब क्रिप्ती वातकी अभिढापा बाढ़ी
नहीं रही है । वीमारीकी हालतमें एक दिन करीब २ बजे दिनको
आप यह समझे कि भव रात होगई। आपने कहा मैं अब ' पानी नहीं
ऊंगा। आपके सुपुत्र छा० निनेश्वरदाप्तनीने व और सबने
आपको बहुत समज्ञाया कि अभी बहुत दिन हैं रात नहीं दे आप
पानी पी लीजिये, दवा खा छीधिये, हम ठोग आपसे झूठ नहीं
कहेंगे | जापने फ़िप्तीकी वातकी प्रतीति नहीं की और सबसे यहीं
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