समाभिमाराना और मृत्युमहोत्सव | Samadhimarana Or Mratyumahotsava
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
876 KB
कुल पष्ठ :
34
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१७)
स्वगलोकका सुख मे णिये ताते सतप्स्पके सं युर भय कहते
होग | भावार्थ--भपता क्व्पका फड तो शयु मये ही
पाइए है | जो ४11 हह्दस्यके मीवनिकू अमरदान टिया अर लग
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दान दिया दाका फंड स्वगडोक विंग कते मोगनिसे आते सो
स्पछोक्के सु तो सूद नम मित्रके प्रत्तावप ही पाईए ता
मूयु सपान इम जीवका कोड उपारक नही । यहा मचुष्य
पर्याय्रहा ज ण देहमे कौन ९ दुख मोगता कितन काछ रहता
माहष्यान रीदनय मकर पिन नरकमें जाथ पड़ता ताएँ अब
मरणका मय अए उह कुढ। परप्रहका ममत्वक र जितापणों
काबू समान समाधिपरणकू बिगाड़ि मयपहित प्मतावान हुवा
कुमणफरि दु्ते नायना उचित नहीं 1] ४ ॥ और हू पिचीरे देन
आगमोदुःख सतत प्रक्षिप्तो देहपज्नरे ।
नात्मा चिछुच्यतडन्येन सृत्युद्धातिपातिं विना ॥५॥
अस--पा हमरों कर नाम बेरी में आत्म,कू देहरुम
पींनरेमें लेप्या सो गर्ल +ाया तिम क्षण सदाकाल शुता तृष्णा
गेग वियोग इत्वादि अनेक दु ख़ न रि तप्तायमान हुवा पढया.
हूं अब ऐसे अनेक दु लनिकरि ब्झप्त इस देहरूग पीनरातें मोर
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