समाभिमाराना और मृत्युमहोत्सव | Samadhimarana Or Mratyumahotsava

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Samadhimarana Or Mratyumahotsava by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१७) स्वगलोकका सुख मे णिये ताते सतप्स्पके सं युर भय कहते होग | भावार्थ--भपता क्व्पका फड तो शयु मये ही पाइए है | जो ४11 हह्दस्‍यके मीवनिकू अमरदान टिया अर लग तप काम क्र दिस्का घानक रे अपन्य अन्याय कुशल पाधत हद्णका त्यागकरि परमसत्तप वारणकरि अपने अ त्माझू अमय- दान दिया दाका फंड स्वगडोक विंग कते मोगनिसे आते सो स्पछोक्के सु तो सूद नम मित्रके प्रत्तावप ही पाईए ता मूयु सपान इम जीवका कोड उपारक नही । यहा मचुष्य पर्याय्रहा ज ण देहमे कौन ९ दुख मोगता कितन काछ रहता माहष्यान रीदनय मकर पिन नरकमें जाथ पड़ता ताएँ अब मरणका मय अए उह कुढ। परप्रहका ममत्वक र जितापणों काबू समान समाधिपरणकू बिगाड़ि मयपहित प्मतावान हुवा कुमणफरि दु्ते नायना उचित नहीं 1] ४ ॥ और हू पिचीरे देन आगमोदुःख सतत प्रक्षिप्तो देहपज्नरे । नात्मा चिछुच्यतडन्येन सृत्युद्धातिपातिं विना ॥५॥ अस--पा हमरों कर नाम बेरी में आत्म,कू देहरुम पींनरेमें लेप्या सो गर्ल +ाया तिम क्षण सदाकाल शुता तृष्णा गेग वियोग इत्वादि अनेक दु ख़ न रि तप्तायमान हुवा पढया. हूं अब ऐसे अनेक दु लनिकरि ब्झप्त इस देहरूग पीनरातें मोर




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