जनपद जालौन के प्राथमिक शिक्षकों की कार्य - दक्षता व प्राथमिक शिक्षा के प्रति अभिवृत्ति के सन्दर्भ में विद्यालय वातावरण तथा उनके कार्य - सन्तोष का अध्ययन | Janpad Jalaun Ke Prathamik Shikshon Ki Karya - Daxata Va Prathamik Shixa Ke prati Abhivritti Ke Sandarbh Men Vidyalay Vatavaran Tatha Unake Karya - Santosh Ka Adhyayan
श्रेणी : राजनीति / Politics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
83 MB
कुल पष्ठ :
366
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शिक्षा की शुरूआत की, उन्होंने प्राथमिक शिक्षा के मकतबों का निर्माण किया
और इनमें अरबी-फारसी और इस्लाम धर्म की शिक्षा को अनिवार्य किया।
इस समय बौद्ध शिक्षा संस्थाएं तो समाप्त प्राय: हो गई थीं परन्तु ब्राह्मणीय
शिक्षा दबे पांव निरन्तर चलती रही, और इन दोनों शिक्षा प्रणालियों की
प्राथमिक शिक्षा में बड़ा अन्तर था। तभी इस देश में यूरोपीय जातियों का
प्रवेश हुआ और उनके साथ इंसाई मिशनरियों का प्रवेश हुआ। ईसाई
मिशनरियों ने इस देश में एक तीसरे प्रकार की प्राथमिक शिक्षा की शुरूआत
की। 1854 के घोषणा पत्र में शिक्षा की संरचना को एक नया रूप दिया
गया। इसमें कक्षा 1 से 4 अथवा 5 तक की शिक्षा को प्र शथमिक शिक्षा कहा
गया और इसका एक निश्चित पाठयक्रम तैयार किया गया। भारतीय शिक्षा
आयोग (हण्टर कमीशन) 1882 ने इस पर अपनी मोहर ठोक दी और एक
लम्बे समय तक प्राथमिक शिक्षा का अर्थ प्रथम चार अथवा पांच वर्षीय शिक्षा
से लिया जाता रहा |
1937 में प्रान्तों में स्वायत्त शासन स्थापित हुआ। उसी वर्ष
गांधीजी ने “राष्ट्रीय शिक्षा योजना' प्रस्तुत की जिसमें 6 से 14 आयु वर्ग के
बच्चों को कक्षा 1 से 8 तक की शिक्षा को अनिवार्य एवं निःशुल्क करने का
प्रस्ताव किया। गांधी जी एवं उनके साथियों ने इसके लिए मातृभाषा एवं
हस्तकौशल प्रधान पाठ्यचर्या तैयार की और इसका सम्बन्ध जीवन से
जोड़ा | बस तभी से हमारे देश में प्राथमिक शिक्षा से अर्थ कक्षा 1 से 8 तक
की आधारभूत शिक्षा से लिया जाने लगा।
15 अगस्त 1947 को हमारा देश स्वतन्त्र हुआ। 26 जनवरी
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