गांधी - अभिनन्दन - ग्रंथ | Gandhi - Aabhinandan - Granth

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Gandhi - Aabhinandan - Granth by सर्वपल्ली राधाकृष्णन - Sarvpalli Radhakrishnan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दो शब्द (पहला संस्करण) 'सस्ता साहित्य मंडल के इस निमन्त्रण को स्वीकार करते मु खुशी होती है कि 'गांधी-अभिनन्दन-ग्रंथ' के हिन्दी-संस्करण के लिए प्रस्तावना-रूप में थोड़ा-सा कुछ लिख दूँ । अंग्रेजी-संस्करण की प्रस्तावना मेंने जब लिखी थी, तबसे यूरोप युद्ध-संकट में पड़ा हुआ है । अभी तो वह आरम्भिक अवस्था में ही है । निःदास्त्र जनता का नुशंस ध्वंस, खुले शहरों पर बम-वर्षा, निहत्थे स्त्री-बच्चों का कत्ल और संगठित त्रास, इनसे प्रकट है कि आज-दिन की सभ्यता ढह रही है । अगर निर्मम बर्बरता के इस दौर को रुकना है तो मनुष्यजाति को वर्गाधिकार और राष्ट्र-शासन के पुराने नारों और मुहावरों को छोड़ना होगा और उन मूल्यों की बुनियाद लेकर खड़े होना होगा, जो अपनी' प्रकृति में न राष्ट्रीय हें, न अन्तर्राष्ट्रीय ; बल्कि विश्व- जनीन हैं । हमारी राजनेतिक धारणाएं और आिक विचार दुनिया की उस नई हालत के साथ खतरनाक तौर पर अनमेल ह जितकी मांग है कि हम अपने को विद्व-कुटुम्ब के सदस्य के रूप में मानें । मानवजाति को सिरे से एक नई तालीम दी जाय और मानव-आत्मा का नया जागरण हो, तभी कुछ आशा है । महात्मा गांधी ऐसे पुनर्जागरण के एक ही साथ विधाता और प्रतीक हें । २९ - ९-३९ --स. राधाकृष्णन




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