सुदर्शन - सुधा | Sudrashan Sudhaa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कद सुदशन-सुघा अचिनकााथ भी भा साध» ा्ाधजभ भा जधभ्थत भाप भा भट्ट भा िागणा ीाता देखना आरम्भ किया । कविता से नवीन रख टपकने ठगा । सहसा उनके हृदय में एक पापपू्ण भाव ने सिर उठाया । उन्होंने कुछ समय तक विचार किया, शोर फिर काँपती हुई लेखनी से कवि का नाम काटकर उनके स्थान में अपना नाम लिख दिया । मनुष्य का हृदय एक अथाह सागर है, जहाँ कमल के फूलों के साथ रक्त की प्यासी जोंके भी उत्पन्न होती रहती हैं । (५) “दपण' का पहला अड्ड निकला, तो पढ़े-खिखे संसार में घूम मच गई 1 लोग देखते थे, भौर फूले न समाते थे । 'दपंण” भाव और भाषा दोनों प्रकार से भत्युत्तम था, भोर विशेषतः “चन्द्रलोक'” की काव्य -माला की पहली कविता पर तो कवि-संसार टू हो गया । एक प्रसिद्ध मासिक पत्र ने तो उसकी समालोचना करते हुए लिखा-- 'पयोंतो 'दपंण' का एक एक पृष्ठ रल-भाण्डार से कम नहीं, परन्तु ' चन्द्र- छोक' की पहली कविता देखकर तो हृदय नाचने छगता है । इसकी एक एक पडिक्त में *अघीर' महाशय ने जादू भर दिया है, और रस की नदी बहा दी है। सुना करते थे कि कविता हृदय के गहन भावों का विशद चित्र है । यह कविता देखकर इस कथन का समथन हो गया । निस्सन्देह 'अधघीर' महाशय की ये कविताएं हिन्दी-भाषा को फ्रांसीसी भौर श्रैगरेज़ी के समान उच्च कोटि पर ले जायंगी । “अघीर' महाशय साहित्य के आकाश पर सूय्य की नाइ एकाएक चमकें हैं । और एक ही कविता से कवि-मण्डछ में शिरोमणि हो गये हैं।” एक दूसरे समाचार-पत्र ने लिखा-- “'अघीर महादाय की कविता क्या है, एक जादूभरा सौन्दर्य है । हिन्दी- भाषा का सौभाग्य समझना चाहिए कि इसमें ऐसे सूद्म भावों के वणन कर नेवाले उत्पन्न हो गये हें, जिन पर भावी सन्तति उचित रूप से अभिमान करेगी । हमें दृढ़ विदचास है कि यदि यह कविता इसी सुन्दरता से पूरी हो गई तो इसे हिन्दी में चही दर्जा प्राप्न हो जायगा जो संस्कृत में 'शकुन्तला” को, अंगरेज़ी में 'पेराडाईज़ लास्ट को, और वड्-भाषा में 'गीताजलि' को प्रा है । अधीर का नाम इस कविता से अमर दो जायगा ।” भोर इतना ही नहीं इस कविता




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