कल्याण [वर्ष 58] [1984] | Kalyan [Year 58] [1984]

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Kalyan [Year 58] [1984] by विभिन्न लेखक - Various Authors

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय २ ] # सचुका मत्स्यभगवानसे युगान्तविषयक प्रदन, मत्स्यद्वारा प्रलयके स्वरूपका वर्णन # ९ वेदान्‌ प्रचर्तयिष्यापि त्वत्सगीदी मचुरप्यास्थितो.. योगं मत्स्यमगवान्‌ कहने छगे--महामुने ! आजसे लेकर सौ वर्षतक इस भूतलपर दृष्टि नहीं होगी, जिसके फलस्वरूप परम अमाज़लिक एवं अत्यन्त भयंकर दुर्भिक्ष आ पड़ेगा । तदनन्तर युगान्त प्रलयके उपस्थित होनेपर तपे हुए अंगारकी वर्षा करनेवाली स॒यकी सात भयंकर किरण छोटे-मोटे जीवॉंका संहार करनेमें प्रदत्त हो जायँगी. । बडवानल भी अत्यन्त भयानक रूप घारण कर लेगा । पातालढोकसे ऊपर उठकर संकर्षणके मुखसे निकली हुई विषाग्नि तथा. भगवान्‌ रुद्रके लल्माटसे उत्पन्न तीसरे नेत्रकी आग्नि भी तीनों लोकोंको भस्म करती हुई भभक उठेगी । परंतप 1 इस प्रकार जब सारी ऐथ्वी जलकर राखकी ढेर बन जायगी और गगन-मण्डल ऊण्मासे संतप्त हो उठेगा, तब देवताओं और नक्षत्रोंसहित सारा जगत्‌ नष्ट हो जायगा । उस समय संबर्त, भीमनाद, द्रोण, चण्ड, बलाहक, विद्युतपताक और शोण नामक जो ये सात प्रलयकारक मेघ हैं, ये सभी अग्निके प्रस्वेदसे उत्पन हुए जलकी घोर दृष्टि करके सारी प्रथ्वीको आप्लावित कर देंगे । तब सातों समुद्र श्षुब्च होकर एकमेक हो जायेंगे और इन तीनों छोकोंको पूर्णरूपसे नमंदा च नदी पुण्या माकण्डेयो महानृषिः । भवो वेदाः पुराणानि विद्यामिः सवेतोबूतम्‌ ॥ रै३ ॥ त्वया साधामद विद्च॑ स्थास्यत्यन्तरसक्षये । एवमेकार्ण वे महदोपते । एवमुक्त्वा वाखुदेबप्रसादजम्‌ । अभ्यसन्‌ यावदाभूतसम्छुत्र॑ पूर्वसूचितम्‌ ॥ १६ ॥ जाते... चास्ुषान्तरसश्तये ॥ २४ ॥ स॒ भगवांस्तजैवान्तरधीयत ॥ १५ ॥ एकार्णवके आकारमें परिणत कर देंगे। सुब्रत ! उस समय तुम इस वेदरूपी नौकाकों प्रहण करके इसपर समस्त जीवों और बीजोंको लाद देना तथा मेरे द्वार प्रदान की गयी रस्सीके बन्घनसे इस नावकों मेरे सींगमें बाँघ देना । परंतप | ( ऐसे भीषण कालमें जब कि ) सारा देव-समूह जलकर भस्म हो जायगा तो भी मेरे प्रभावसे सुरक्षित होनेके कारण एकमात्र तुम्हीं अवशेष रह. जाओगे ।. इस आन्तर-प्रलयमें सोम, सूर्य, मैं, चारों लोक्रोंसहित ब्रह्मा, पुण्यतोया नर्मदा नदी, मद्दर्षि माकंण्डेय, शंकर, चारों वेद, विधाओंद्वारा सब ओरसे घिरे हुए पुराण और तुम्हारे साथ यह ( नौका-स्थित )) विश्व--ये ही बचेंगे । महीपते ! चाक्षुप-मन्वन्तरके प्रलयकालमें जब इसी प्रकार सारी प्रथ्वी एकार्णवरम निमग्न हो जायगी और तुम्हारेद्वारा स्टिका प्रारम्म होगा, तब मैं वेदोंका ( पुनः ) प्रवतन करूँगा ।' ऐसा कहकर भगवान्‌ मत्स्य वहीं अन्तर्धोन हो गये तथा मनु भी वहीं स्थित रहकर भगवान्‌ बासुदेव दी क्रपासे प्राप्त हुए योगका तब्रतक अभ्यास वरते रे, जबतंक पूर्वसचित प्रलयका समय उपस्थित न हुआ ॥ ३-१६ ॥ काले यथोक्‍ते सब्जाते वासुदेवमुखोदूगते | शउक्ी घादुक्भूवाथ मत्स्परूपी जनाइंनः ॥ १७ ॥ भुजज्ी रज्जुरूपेण मनोः पाइवेसुपागमत्‌ । भूतान सवोन्‌ समाऊुष्य योगेनारोप्य धर्मवित्‌ ॥ १८ ॥ भुजडरउज्वा मत्स्पस्य शउड़े नावमयोजयत्‌ । उपयुपस्थितस्तस्याः प्रणिपत्य. जनादनम्‌ ॥ १९ ॥ आभूतसम्पुवे.. तस्मिन्नतीते ... योगशायिना । ः पृष्टेन मचुना प्रोक्त॑ पुराण मत्स्यरूपिणा । तदिदानीं प्रक्ष्यामि . श्णुध्वसखूपिसत्तमाः ॥ २० ॥ यदू भवद्धिः पुरा एरप्टः सष्टश्वादिकम _द्विजाः । तदेवेकाणेवे तस्मिन्‌ मजुः पच्छ केदाबम्‌ ॥ २१ ॥ तदनन्तर भगवान्‌ वाछुदेवके मुखसे कहे. गये पूर्वोक्त ्‌ प्रलयकालके उपस्थित होनेपर भगवान्‌ जनादन एक सींगवाऊे मत्स्यके रूपमें प्रादुभूत हुए । उसी समय एक सर्प भी रज्जु-रूपसे बहता हुआ मलुके पाइ्वभागमें आ पहुँचा । तब घमज्ञ मनुने अपने योगबलसे समस्त जीवोंको खींचकर नौकापर लाद लिया और उसे सर्परूपी रस्सीसे मत्स्यके सींगमें वाँध दिया । तत्पश्चात्‌ भगवान्‌ जनादनकों प्रणाम करके वे खय॑ भी उस नौकापर बैठ




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