धातु विज्ञान | Dhatu Vigyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय 3 .. १३/ अ . धातु और उनका महत्त्व मानव-सम्यता के इतिहास में धाठुश्ों का स्थान अ्रत्यंत महत््वपूण रहा है । पाषघाणु-युग के पश्चात्‌ घातु-युग का श्रारंभ हुआ । अस्त्र-शख््र यंत्र और वस्तु- विनिमय के माध्यम के रूप में घातुएँ अधिकाधिक लोकप्रिय बनती गई श्रौर आज घातुएँ हमारी सम्यता का श्राघार बन गई हैं । सुई से लेकर भीमकाय एंजिन और जहाज लुद्दार को छेनी से लेकर धड़े बड़े स्वयं-संचालित यंत्र कील से लेकर बड़े बड़े पुल सब के सब किसी न किसी धातु के बने हैं । व्यवसाय शिल्प शल्य आवागमन निवास विद्युत्‌-और रेडियो सभी क्षेत्रों में धातु की महिमा प्रत्यक्ष दिखाई देती है । मानव जीवन के - अस्तित्व के लिये घातुए भले ही अनिवाय न हों वास्तव में आदि मानव बहुत काल तक बिना घातुश्यों के व्यवहार के जीवित रहे--पर वर्तमान युग के सभ्य जीवन के लिये वे -श्ररत्य॑त झ्ावश्यक बन गई हैं । आजकल किसी भी राष्ट्र की शक्ति और प्रगति - उसकी धातुं उत्पादन की क्षमता के द्वारा नापी जाती है । कृषि के पश्चात्‌ घाठुग्रों का उत्पादन ही संसार का सबसे बड़ा व्यवसाय है । हमारा भारतवर्ष प्राचीन काल से ही धातु के उत्पादन और सदुपयोग में श्र्रणी रहा है। मोहेन-जो-दारो सिंघ की खुदाई में निकली ७००० व पुरानी वस्तुएं तथा दिल्ली का लौह स्तंभ इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं । हमारी खनिजात्मक संपत्ति विशाल है । हमारे देश में प्रायः सभी घातुएँ न्यूनाधिक परिमाण में पाई जाती हैं । हमारी लोदे की खानें दुनिया की श्रेष्ठतम श्र संबसे बढ़ी खानों में से हैं । श्रनुमानतः १० ००० ००० ००० टन लोदे की खनिज यहाँ - की भूमि में विद्यमान है । झलुमीनियम श्र मैंगेनीज आदि धातुएँ भी पर्याप्त मात्रा में पाई जाती हैं । खनिजात्मक संपत्ति विशाल होते हुए भी दुर्भाग्यवश यहाँ घातुद्रों का उत्पादन इस समय नितांत अ्रपरयाप्त है । प्रमुख घातुद्रों में लोहा ्रौर इस्पात का स्थान सर्वोपरि है । संसार में प्रति वर्ष १५ करोड़ टन लोहा श्र इस्पात २५ लाख टन ताँवा २० लाख टन




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