शिक्षादान | Shikshadan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
67
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( रे )
ही महीने में इसी सब जायदाद ले हर किये देता हूं। तीन
महीने हुए जब से इससे जान पहचान हुई कई हज़ार
रुपये खब कराये उस दा चौथाई झमदछक उस्तादों
की गोड़ी हुई । खूब चैन उड़े । झच्छा ! तो यहाँ बिलाई के -
चया मेंस छगती है ? रोज नया शिकार मारना और सुलछुरे
उड़ाना | इस तींने सौ में थी दो सौ हमारे बाप का हो
खुका । दस बीस खर्च ऊरिसी अखोड़ से इसे मिलादु'गा ।
वाद ! क्या सोच घर से चला और व्या हो गया । इछादी-
जान से कीछ कर आये थे कि रसखिक लाल का तेरे यहाँ ला
सुक्ाते हूं । यहां कुछ झर ही तार जम गया। झच्छा ! कुछ
खिस्ता नहीं । उस चुड्टी को भी जुल दूंगा नहीं काई दूसरा
छासामी इससे भी अधिक मालदार उसके यहां ले जा भुक्ता
दुगा, ( ठहर कर ) इस के देर बड़ी देर हुई कया करने
लगा। (नेपथ्य की ओर देख) हो झओआ दो रहा है
सब का सब इससे भंख हो इलादीजान के यहां जाता हूं
तो शराब का खर्चा घुभी के. देना पड़ता है। झाज इसी
से काम चलाऊ'गा ।
(बोतल शोर ग्लास हाथ सें लिये रशिकलाल का प्रवेश)
रा० व० दा०--साई ! बड़ी देर हुई झाब दस जाते हैं ।
र० छा0--कैसे खक्ी दो इतनी देर से बैठे थे, जब दम माल
लाये तब उठ खड़े इुपए ।
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