उत्तर पश्चिम सरहद के आजाद कबीले | Uttar Pashim Sarhad Ke Ajad Kabile
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
389
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कवीलों का देश : भौगोलिक दशेन श्र
के स्वतन्त्र देश फा कुछ लुमान किया जा सकता है। इसकी, सम्भव
ड झन्य भापा-भापियों को आवश्यकता नहीं पड़ती, किन्तु यु्गों से
शुलाम भारत स्वतन्त्रता का स्वाद ही क्या जाने ? इसलिए ट्रप्टभूमि के
रूप॑ में यदद 'प्ावश्यंक था कि पहले श्वपने सम दुःखसाथी पाठकों के
मस्तिष्कों तथा करपना को स्वतन्त्रता के प्रभावपूर्ण प्रवादद के लिये साज
सैँमाल लें । उत्तर-पशिचिम सीमा प्रान्त भी श्रधिकांश में नहीं तो वहुततांश
में हमारी ही भाँति दासता की यातनाऐं अँप्रेज़ी शासन की वेड़ियों में
बैँघा-दधा मोग रहा है। केवल एक छोटा-सा प्रदेश, जिसे “झाज्ञाद
कवीलों का देश कहते हैं आंशिक रूप से स्त्रतन्त्र दै। इसके '्तिरिक्त
कुछ भाग श्र्धे स्वत्त्र भी दे 'और शेप पूर्ण पराधीन ।
इस श्रकार उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त का विभाजन दो मानदण्डों
से हो सकता है, प्रथम प्राकृतिक _श्लौर दूसरा राजनैतिक । पहले हम
प्राकृतिक विभाजन को ही लें ।
. प्राकृतिक विचार से सीमा प्रान्त के तीन भाग निश्चित होते हैं--
'(छ दज्ाणाका सिन्दुवाला जिला । (२) स्थाई जिलों ( पेशावर, कोहाट,
,बन्नू 'औीर डेरा इस्माइल खाँ » चाली पहाड़ी सीमा तथा सिन्धु नदी के
वीच चाला पहले की अपेक्षा सैंकरा भू:भाग। (३) इन'जिलों और
अफगानिस्तान के मध्य में स्थित दुर्गम पहाड़ी भाग ।
श्-इजारा जिले फा यद पदाढ़ी भू-भाग उत्तर-पूव॑ की शोर
हिमालय की श्र 'शियों में चौड़ा तथा क्रमश: कांगान की 'वाटी में जाकर
“सेकरा हो गया है। यह प्वत-मालायें दक्षिण की छोर सुड़ गई हैं |
इन्हीं श्रेणियों की बनावट से कागान की घाटी का निर्माण होता है ।
शाचलपिंडी के निकट कर यद पहाड़ी दरे मैदान में परिणत हो लाती
है ीर पिदले पहाड़ी कठोर प्रदेश का सिलसिला समाप्र हो जाता है ।
नेनदूसरा मेदानी भाग जो सिन्धुनद् तथा पहाड़ियों के वीच में है
वीन मेंदानों में बैंड गया है । यह तीन मैंद्रान हैं-(झ) पेशावर, (व)
'बन्चू , (स) टेर इस्माइल रो । यइ तीनों मंदान एक दूसरे से श्ज्तग-
अलग हैं मोर इनका दिभक्तिकरण नमक की पहाड़ियों नथा कोद्दाट की
के
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