उत्तर पश्चिम सरहद के आजाद कबीले | Uttar Pashim Sarhad Ke Ajad Kabile

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Uttar Pashim Sarhad Ke Ajad Kabile by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कवीलों का देश : भौगोलिक दशेन श्र के स्वतन्त्र देश फा कुछ लुमान किया जा सकता है। इसकी, सम्भव ड झन्य भापा-भापियों को आवश्यकता नहीं पड़ती, किन्तु यु्गों से शुलाम भारत स्वतन्त्रता का स्वाद ही क्या जाने ? इसलिए ट्रप्टभूमि के रूप॑ में यदद 'प्ावश्यंक था कि पहले श्वपने सम दुःखसाथी पाठकों के मस्तिष्कों तथा करपना को स्वतन्त्रता के प्रभावपूर्ण प्रवादद के लिये साज सैँमाल लें । उत्तर-पशिचिम सीमा प्रान्त भी श्रधिकांश में नहीं तो वहुततांश में हमारी ही भाँति दासता की यातनाऐं अँप्रेज़ी शासन की वेड़ियों में बैँघा-दधा मोग रहा है। केवल एक छोटा-सा प्रदेश, जिसे “झाज्ञाद कवीलों का देश कहते हैं आंशिक रूप से स्त्रतन्त्र दै। इसके '्तिरिक्त कुछ भाग श्र्धे स्वत्त्र भी दे 'और शेप पूर्ण पराधीन । इस श्रकार उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त का विभाजन दो मानदण्डों से हो सकता है, प्रथम प्राकृतिक _श्लौर दूसरा राजनैतिक । पहले हम प्राकृतिक विभाजन को ही लें । . प्राकृतिक विचार से सीमा प्रान्त के तीन भाग निश्चित होते हैं-- '(छ दज्ाणाका सिन्दुवाला जिला । (२) स्थाई जिलों ( पेशावर, कोहाट, ,बन्नू 'औीर डेरा इस्माइल खाँ » चाली पहाड़ी सीमा तथा सिन्धु नदी के वीच चाला पहले की अपेक्षा सैंकरा भू:भाग। (३) इन'जिलों और अफगानिस्तान के मध्य में स्थित दुर्गम पहाड़ी भाग । श्-इजारा जिले फा यद पदाढ़ी भू-भाग उत्तर-पूव॑ की शोर हिमालय की श्र 'शियों में चौड़ा तथा क्रमश: कांगान की 'वाटी में जाकर “सेकरा हो गया है। यह प्वत-मालायें दक्षिण की छोर सुड़ गई हैं | इन्हीं श्रेणियों की बनावट से कागान की घाटी का निर्माण होता है । शाचलपिंडी के निकट कर यद पहाड़ी दरे मैदान में परिणत हो लाती है ीर पिदले पहाड़ी कठोर प्रदेश का सिलसिला समाप्र हो जाता है । नेनदूसरा मेदानी भाग जो सिन्धुनद्‌ तथा पहाड़ियों के वीच में है वीन मेंदानों में बैंड गया है । यह तीन मैंद्रान हैं-(झ) पेशावर, (व) 'बन्चू , (स) टेर इस्माइल रो । यइ तीनों मंदान एक दूसरे से श्ज्तग- अलग हैं मोर इनका दिभक्तिकरण नमक की पहाड़ियों नथा कोद्दाट की के




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