महाभारत (द्वितीय भाग ) | Mahabharat (dwitiya Bhag)
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
440
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अध्याय ४ 1] ३ चनपे - ३८७
ऐसे कहा हुआ अपने जनों का प्यारा बुद्धिमान विदुर युधिष्टिर
की अनुपात में फेर हास्तिनापुर आया ॥ २५ ॥ उस से महाते-
जस्वी धृतराष्ट्र वोले-दहे घमज्ञ भाग्य से तुम आए दो, दे निष्पाप
भाग्य से मेरा तुझे रपरण है ॥ २९ ॥ यह .कह ब्रिदुर को उसने
गोद में छे जिया, और माथा चूमा, और कहा क्षमा कर हे
निष्पाप जो मैंने कहा है ॥ २३ ॥ विदुर वोठे-हे राजन ! मैंने
समा ही किया हुआ है आप मेरे परम गुरु ( बड़े ) हैं। यह
मैं जल्दी आप के दर्बान के लिये आया हूं ॥ २४ ॥ मुझे जैसे
पाण्ड के पुत्र हैं, बेमे ही हे भारत तेरे हैं, किन्तु वह दीन हैं,
इस से इस समय मेरी बुद्धि उनकी ओर झुकती है ॥ २५ ॥ इस
प्रकार आपस में अवुनय करके परम हुख छाभ करते भए॥ २६!
अ० ४(व० १९-१३ ) कृष्ण और युधिष्टिर का सबाद
सुक--भोजा। म्रत्रजिताद, श्रत्ता रण्णयश्चान्थके। सह । '
पाण्डबान दुःख सतप्ान, समाज्पुमडावन ॥ १. ॥ वोसुंदेव॑ पुर-
स्क़स सर्चे ते क्षत्रियपमा। । परिवायापंविधिद्युघमराज युधि/रेठे-
रम ॥ २ ॥ व्सुदेव उवाच-नैतत छृच्छ मलुमाप्तो भवाद स्थादू
वसुपाधिप । यद्यू द्वारकायांश्यां राजन सलिहितः पुरा ॥ ३ ॥
आगच्छयमद झूत मनाहृतोपि कौंरवें: । वारंययं महूं झूत बहून
दोषाने मदर्धयन् ॥ '४ ॥
अधे-मोन, दृष्णि ओर अन्घक, पाण्डवों का. बनत्रापत
सून कर दुःख से तपे हुआं के पातत उस महावन मे आए ॥ श्फ्षे
' बह सब क्ाबेयवर कृष्ण को आगे कर के धर्मराज युधिष्िर के
सामने घेरा ढाल कर बैठ गए ॥ २॥ कृष्ण 'ोले-दे राजन: |
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