भगवन महावीर जयंती समारोह स्मारिका | Bhagwan Mahaveer Jayanti Samaroh Smarika

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Bhagwan Mahaveer Jayanti Samaroh Smarika by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हमारे सामने आते हैं उनका चिन्तन एक ऐसा समाज शास्त्रीय दशन प्रस्तुत करता है; जो देश और काल की सीमाओं से परे हैं । मानव मात्र के लिए है। सारे विश्व के लिये है । भगवान्‌ महावीर के चिन्तन का अध्ययन अब इस दृष्टिकोण से किया जाना चाहिए । विश्व के दाशनिकों के चिन्तन के साथ महावीर के चिन्तन का अध्ययन करके विश्व कल्याण के लिए महावीर के नच्विन्तन का अमृत प्रस्हत करना चाहिए. । दूसरी बात वेज्ञानिक सन्दर्भों की है । यह और अधिक महत्वपूर्ण है इस विषय में दो वातें ध्यान में रखनी होंगी । एक यह कि महावीर की पत्चीस सो वर्षों में व्याप्त परम्परा के साहित्य मे जो वज्ञानिक तथ्य उपलब्ध होते हैं, उनका अध्ययन किया जाये । दूसरे यह कि सेद्धान्तिक मान्यताओं का प्रायोगिक अध्ययन किया जाये । उदाहरण के लिए कुछ विषय ये हैं-- १ | लोक की रचना के विषय में वातवलय का सिद्धान्त बहुत महत्वपूर्ण है । तीन वातवलय इस विश्व के आधार बताये गये हैं । अन्तरिक्ष की खोज से बातवलयों की मान्यता थोडी-थोडी समझ में आ जाती है । इसका पूरा अध्ययन किया जाये तो आन्तरिक्ष यात्रा के नये आयाम खुल सकते हैं । लोक के स्वरूप की जो मूलभूत मान्यता थी; संभवतया बाद के व्याख्या ग्र थो में वह डूब गयी है । इस कारण हम उसके अध्ययन सूत्र नहीं पकड पा रहे हैं और हमें लगता है; जेसे ये मान्यताएं काल्पनिक रही हो । जब तक इनका सम्यक्‌ परीक्षण न कर लिया; तब तक इनको झुठलाने की वात मेरी समझ में नही आती | २५ जीव के विकाश की प्रक्रिया का प्रायोगिक अध्ययन ससार की भअनेक युत्थियो को सुलझा सकता है। डाविन ने विकासवाद का सिद्धान्त प्रतिपादित किया था । हमारे यहाँ निगोद से लेकर मोक्ष तक की विकास प्रक्रिया का विधिवत वर्णन किया है । इसका अध्ययन डार्विन के सिद्धान्त तथा अन्य नवीन खोजों के साथ घुलनात्मक दृष्टि से अपेक्षित है । ३: कमंवन्ध की रासायनिक प्रक्रिया का अध्ययन एक महत्वपूर्ण विषय है । स्निग्ध और रूक्ष कर्म पुझ् पदूगलों का बन्ध किस प्रकार होता है ४ किन परमाणुओ का आख्ब होने के बाद भो वन्ध नहीं होता? बंधे € ७५ ९ कर ) हुए कम परमाणुओ की निजरा किस प्रकार होती है, इत्यादि का अन्ुसन्धान होने पर कई नये तथ्य उद्घाटित होंगे । ४४ कम सिद्धान्त में जो गणितीय सामग्री है; उसमें आधुनिक गणित सिद्धान्त की सबसे जटिल 'सेदुथ्योरी” के समाधान की सामग्री उपलब्ध है । इसका अध्ययन प्रायोगिक रूप में आवश्यक है । इसी प्रकार के अन्य अनेक विषय हैं; जिनका अध्ययन प्रायोगिक स्तर पर होना चाहिए | उपयुक्त दोनो प्रकार से अर्थात्‌ समाजशास्त्रीय रृष्टिकोण से तथा प्रायोगिक रूप में महाबीर के चिन्तन का अध्ययन परम्परागत ढंग की. पाठ्शालाओ; विद्यालयों या साहित्यिक अनुसन्धान के लिए स्थापित संस्थानों मैं संभव नही है। मानविकी तथा विज्ञान के निष्णातत और निष्ठावान्‌ अध्येता तथा सिद्धान्तों के सच्चे ज्ञाता जब सस्मिलित रूप से इस दिशा में प्रवृत होंगे तभी इस प्रकार के अध्ययन सम्भव हैं । मै इस बात को वर्षों से कहता आ रहा हूँ । आचाये छुलसी जी ने जब जेन विश्व भारती की स्थापना की वात प्रारम्भ की थी तब उनके समक्ष भी मैने यह बात रखी थी । बम्बई में महावीर निर्वाण शताब्दी के लिए कमेटी बनी तव उनको भी मैने यह लिखा था कि इस अवसर पर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का कोई संस्थान स्थापित हो सके; तो शताब्दी मनाना सही माने में साथक होगा 1




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