मौसम शास्त्र | Mausam Shastr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय एक परिपूर्ण भयादोहन युद्ध-ध्वस्त इंडोचीन अपरंपरागत शस्त्रों की परंपरागत परीक्षण भूमि रही है । वहां के कई स्थानों पर गतों का घनत्व चंद्रमा के पृष्ट के क्रेटरों से भी अधिक है। कहा जाता है कि उसी हो ची मिन्ह पगडंडी पर 1966 में इन सब शस्त्रों से अधिक विश्वासघाती मौसम शास्त्र का परीक्षण किया गया था । एक ऐसे संसार में जहां न्यूक्लीय गत्यावरोध से आकुल संतुलन स्थापित था मेगाटन बम तो कुंठित हो गया पर परिपूर्ण भयादोहन के शास्त्रों की खोज नहीं छोड़ी गयी । राष्ट्रों में सैनिक प्रतिवतं इतनी शीघ्रता से होता है कि विसेंट जे. शेफर की नवंबर 13 1946 की ऐतिहासिक मेघबीजन उड़ान के कुछ ही महीनों के अंदर उस शोध से प्रेरित होकर सैनिक बजटों से आधिक सहायता बड़े पैमाने पर मेघ आपरिवर्त॑न परियोजनाओं को दी जाने लगी । ये परियोजनायें मौसम तथा जलवाय के साथ राष्ट्रों की चाहे वे बड़े हों या छोटे बागडोर नियंत्रित करने के बाद के प्रयासों की पृ्वंगामी थीं । विनादा का अग्रदृत अपनी युग प्रवतंक उड़ान के बाद उल्लसित डा. शेफर ने प्रयोगशाला की नोट- बुक में लिखा अभी हम बादलों में ही थे पर जब चारों ओर चमकते हुए क्रिस्टल दिखाई पड़े मैंने कुट की ओर मुड़कर हाथ मिलाया भर कहा हमने कर दिखाया । परंतु इस विचार से उठी वैज्ञानिक की यह सच्ची प्रसन्नता कि उसे ऐसी प्रस्फोटक सफलता का श्रेय है जिससे पृथ्वी पर व्याप्त भूख किसी दिन दूर को जा सकेगी अल्पकालिक सिद्ध हुई । सुदूर नीचे ठोस भूमि पर इस सफल परीक्षण ने भूमंडल के विभिन्‍न मार्गों में वर्दीधारी लोगों को एक दूसरे प्रकार से उत्लसित किया । उनके लिए इसका मतलब सैनिक कारंवाइयों की कला तथा विज्ञान में अमित संभावनाओं




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