श्रीव्यख्यान मणिमाला | Shrivyakhyan Manimala

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Shrivyakhyan Manimala by शतावधानी मुनि धनराज - Shatavdhaani Muni Dhanraj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आदि मंगल तर्ज--मेरा दिल तोड़ने वाले जिनेदवर देव की जग में, सदा जय हो, सदा जय हो । त्रिलोकी नाथ की जग में, सदा जय हो,सदा जय हो ॥।ध्लुवपद।। मारकर मोह-ममता को, धारकर अचल समता को। बने अरिहूंत नो उनकी,सदा जय हो,सदा जय हो। जिनेखवर ॥1१॥। महाब्रत शुद्ध घारण कर, दे रहे ज्ञान उत्तमतर। परम उपकार कर्ता की, सदा जय हो, सदा जय हो । सद्गुरुदेव की जग में, सदा जय हो, सदा जय हो ! ॥२॥। आत्म-उत्थान जो. करता, सकल मल कम का हरता । वहीं सद्धम है, उसकी सदा जय हो, सदा जय हो ! धर्म महाराज की जग में, सदा जय हो, सदा जय हो 1 ॥३॥। देव-गुरु-धर्म को स्मरण कर, पिरोकर प्रवर मणिमाला | आज सानंद पहुनूंगा, सदा जय हो, सदा जय हो ! जिनेश्वर देव की जग में, सदा जय हो, सदा जय हो ! सद्‌ गुरुदेव की जग में, सदा जय हो, सदा जय हो ! धर्म महाराज की जग में, सदा जय हो, सदा जय हो ! ॥॥४॥




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