भारतीय आर्थिक चिन्तन | Bharatiy Aarthik Chintan

Bharatiy Aarthik Chintan by एम॰ एल॰ छीपा - M. L. Chhipa

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about एम॰ एल॰ छीपा - M. L. Chhipa

Add Infomation AboutM. L. Chhipa

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
षठ भारतीय आर्थिक विचारों की रूपरेखा इयययपयरससययस्य्यथयसयर्य्ययययिय्यससयययमयययज याज्ञवल्वय नारद बृहस्पति गौतम पाराशर हारीत वशिष्ठ की स्मृतिया उल्लेखनीय हैं । स्मृतियो मे आर्थिक विचारों को भी काफी महत्व प्रदान किया गया है। (4) पुराण-इतिहास - इस साहित्य मे रामायण महाभारत तथा उपपुराणों को शामिल किया जाता है। वायु अग्नि विष्णु वामन भागवत्त पुराण आदि ऐसे पुराण हैं जिनमे अर्थव्यवस्था सबधी विचार पर्याप्त मात्रा मे मिलते है । (5) खण्ड काव्य व अन्य सरकूत साहित्य - इस श्रेणी मे कालिदास दाणभंटट भास शूद्रक दण्डी आदि के ग्रम्थ तथा नीति साहित्य सम्मिलित किये जा सकते हैं । (6) ऐतिहासिक विचारक - मेगस्थनीज हेनसाग फाहियान तथा इन्नवबूता आदि विदेशी इतिहासकारो के अतिरिक्त अबुलफजल फरिश्त' वदाउनी आदि के ग्रन्थो से आर्थिक विधारो का ज्ञान होता है। इसी कड़ी मे कौटिल्य के अर्थशास्त्र का उल्लेख जरुरी है क्योकि उसमें राजनीतिक प्रणाली के साथ-राथ आर्थिक व्यवरथा के विशिष्ट पक्षो थथा-उत्पादन वितरण मूल्य-नियत्रण सपत्ति का विनियमन कृषि वाणिज्य व ध्यवसाय की उन्नति व्यापारियों व उपभोक्ताओं के हितो का सरक्षण करारोपण तथा 'समग्रत आर्थिक प्रणाली मे राज्य की भूमिका आदि का व्यवस्थित विवेचन किया गया है| (7) गुद्वाएँ तथा सिक्के - सिन्धु सभ्यता से ही मुद्रा विभिन्‍न रुपो मे प्राप्त हुई है जिनसे जीवन रहन-रहन व्यापार व्यवसाय आदि के वारे मे जानकारी मिलती रही है। यह निर्विवाद शत्य है कि अभी तक भारतीय घाडगमय मे यत्र-तत्रं वियरे हुए आर्थिक विचारों का क्रमबद्ध अध्ययन नहीं किया जा सका है। अत्तएव सामाजिक परिवर्तन के परिवेश में ही आर्थिक विचारों के विकास का अध्ययन शमीचीन जान पड़ता हैं। आर्थिक विधार देशकाल एवं परिस्थितियों के अनुकूल बदलते हैं और विकसित होते रहे हैं। यहा पर भारतीय आर्थिक विचारों का विवेचन इस तथ्य को ध्यान मे रख कर किया गया है। ज्ञान की किसी भी शाखा को वैज्ञानिक बनाने के लिए उसका विश्लेषणात्मक अध्ययन तथा अनुशीलन कर सभी सामान्य परिस्थितियों मे खरे उत्तरने वाले मूलभूत शाश्वत सिद्धातो का निरुपण आवश्यक है । प्राचीन आर्थिक विचारों मे सत्य का अभाव नहीं है। अतएव तथाकथित वैज्ञानिकता का बहाना लेकर उन्हे उपेक्षित नहीं किया जा सकता और न ही मानव जाति के ऐतिहासिक विकास क्रम से अलग किया जा सकता है। वैदिक ग्रन्थो से सम्बद्ध आर्थिक विचार दर्शन धर्म एव नीतिशास्त्र रो रामन्वय रथापित कर आगे बढे तथा सदैव विकास की ओर उन्मुख रहे, वरसुत सामाजिक एव आर्थिक जीवन के विकास के साथ आर्थिक विचारो का विकास क्रम भी चलता रहा है। आर्थिक तथा रामाजिक विचारों का सबध आधुनिक अर्थशास्त्री आज के वातावरण मे उत्पन्न समस्याओं जैसे मूल्य




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now