श्री भागवत दर्शन भागवती कथा भाग - 39 | Shri Bhagwat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 39
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
242
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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इसी प्रकार श्रीकृष्णके इन मनोगत भावोकों ज रस-मभके
सूर भीसूरदासने इन शद्दोमे कहा है। श्रीकृष्ण रोते-रोते ध्पने
सुद्दद' सखा 'और मन्त्री उद्धयसे करुणाभरी वाणीमे कद रहे है--
ऊधो मोदि बज पिसरत नाही |
हस सुताकी सुन्दर क्लख श्र कुझनिवी छाह्ी ॥१॥
वे सुरभी वे बच्छ दोहनी सारिक डुद्दावन जाहीं ।
ग्वालयाल सब करत कुलाइल नाचत गहि गहि बाहीं ॥२11
यह मथुरा कथनकी नगरी मणि सुक्ता जिहिमाही ।
शरीकृप्ण एक पलकों भी न्जफों नहीं भुला सका, किन्तु
विचारा क्या करे, परिस्थितिने उसे विवश कर दिया। इसलिये
अजवासियोंके सम्मुख उसे दार माननी पडी । इसीलिये उसने
उद्धवजीके हाथों श्रजसे नन्द यशोदाकों सन्देश पठाया था--
कामरी लऊुट माहिं भूलत न. एक पल,
जा. दिनतें छार्के छूट जाई ग्वालनिको,
ता दिनतें भोजन न पावत सकारे हैं ॥
भनै यदुयस जो थे नेद नन्दयश सो,
बसी ना िसारों जो है बश हू फिसारे हैं।
ऊधो म्रज जैयो मेरी लैयो चौगान गेंद,
मैयाते कहदियी दम पणियाँ तिद्दारे हैं ॥
मैयासे भ्णियों कट्नेकी वात तो उचित भी है, किन्तु भैया
वहाँ ग्वाल बाल तो हैं ही नहीं, सेलेंगा क्निडे साथ । येल तो
ससाचओोंमें ही बनता है तू तो 'ऐसे ही नजकी बाते स्मरणफरः
करके रोता रह ।
बन
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