श्री भागवत दर्शन भागवती कथा भाग - 39 | Shri Bhagwat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 39

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Shri Bhagwat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 39  by श्रीप्रभुदत्तजी ब्रह्मचारी - Shree Prabhu Duttji Brhmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१५ ) इसी प्रकार श्रीकृष्णके इन मनोगत भावोकों ज रस-मभके सूर भीसूरदासने इन शद्दोमे कहा है। श्रीकृष्ण रोते-रोते ध्पने सुद्दद' सखा 'और मन्त्री उद्धयसे करुणाभरी वाणीमे कद रहे है-- ऊधो मोदि बज पिसरत नाही | हस सुताकी सुन्दर क्लख श्र कुझनिवी छाह्ी ॥१॥ वे सुरभी वे बच्छ दोहनी सारिक डुद्दावन जाहीं । ग्वालयाल सब करत कुलाइल नाचत गहि गहि बाहीं ॥२11 यह मथुरा कथनकी नगरी मणि सुक्ता जिहिमाही । शरीकृप्ण एक पलकों भी न्जफों नहीं भुला सका, किन्तु विचारा क्या करे, परिस्थितिने उसे विवश कर दिया। इसलिये अजवासियोंके सम्मुख उसे दार माननी पडी । इसीलिये उसने उद्धवजीके हाथों श्रजसे नन्द यशोदाकों सन्देश पठाया था-- कामरी लऊुट माहिं भूलत न. एक पल, जा. दिनतें छार्के छूट जाई ग्वालनिको, ता दिनतें भोजन न पावत सकारे हैं ॥ भनै यदुयस जो थे नेद नन्दयश सो, बसी ना िसारों जो है बश हू फिसारे हैं। ऊधो म्रज जैयो मेरी लैयो चौगान गेंद, मैयाते कहदियी दम पणियाँ तिद्दारे हैं ॥ मैयासे भ्णियों कट्नेकी वात तो उचित भी है, किन्तु भैया वहाँ ग्वाल बाल तो हैं ही नहीं, सेलेंगा क्निडे साथ । येल तो ससाचओोंमें ही बनता है तू तो 'ऐसे ही नजकी बाते स्मरणफरः करके रोता रह । बन




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