मनोजमाजरो ृतिकालिका | Manojamajro Ritykalika(1889)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
81
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नाल
नेना निमिख रत हे । सुखी हो जू काल तुमे काचू की
न चिन्ता वच देखेचू दुखित अन देखेचू दुखित कै 1२१॥
हज बहि जाय न कहूँ यों आय आंखिन लें उमड़ि
अनोखी घटा बरसति मे की । कहे पदमाकर चलावे
खान पान की को प्रानन परी है आानि दहसति देह
की ॥ चाहिये न एसी ह्ृष्रभान की किसोरी तोह् आई
दे दमा जो ठीक ठोकर सनेक् की । गोकुल की कुल की
नगेल की गोपालें सुधि गोरस की रस की न गौवन
की गे की ॥ २२ ॥
'दाहहा ।
केसे आए छो निरखिं तुम तहूँ नंद किसोर ।
भरभरात भामिनि परी घरघरात घन घोर ॥२३॥
परिहास यधघा--कवित्त ।
वन्दाबन चंद अड्डों आनद के कंद तुम माघव सुकन्द
को अनन्द छवि जोरी के । नंद जू के नंद बलदेव के
सछोदर सखान में सराहे घन स्यथाम मति भोरी के ॥
फागुन के औमर फजीद्त बजाय ढोल कक्त कहाए हम-
भान की किसोरी के । गायन के रह शुलाम हज गो-
पिन के हो हो इरि भडुआ हजार दार छोरी के ॥ २४ ॥
सवेया ।
दी ललिता वह कौन सी पाइनि श्राइ तिश्ारडे
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