प्रतिक्रमणत्रय शब्दकोश | Pratikramantray Shabdakosh

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Pratikramantray Shabdakosh  by आर्यका प्रशान्तमती माताजी - Aaryaka Prashantamati Mataji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रतिक्रमणत्रय शब्दकोश ८ अ्रहिबंदिऊशग--नमस्कार करके । श्रहोरदियं--दिवस-रात्रि सम्बन्धी । श्रंकुरा--अंकूर । श्रंडाइया--श्रण्डों से उत्पन्न होने वाले कबूतर श्रादि पक्षी । श्रंतउरं-अंत:पुर (रानियों का निवासगूह) । झ्ंतयडाणं --ससार का अ्रंत करने वालों का । प्रत्येक तीर्थंकर के काल में घोरोपस्ग सहन कर प्रन्तमुं हुते में सर्वे कर्म क्षय करने वाले दस-दस अझन्त:कृत केवलियों का। अ्रंतो-अंतो --श्रन्दर ही भ्रन्दर । आ झाइच्चेहि--सू्ये से । अआइरियारां--पंचाचार का स्वयं पालन करने वाले, श्रौरों को पालन कराने वाले तथा छत्तीस गुणों से समन्वित श्राचार्यों को । श्राउंचणे-. हाथ भ्रौर पैरों को सकुचित करने में । श्राउस्संतो--हे ग्रायुप्मान्‌ भव्यों ! श्रागदिगदि-चवरतोवचाद...-श्रन्य स्थान से यहाँ भ्राना आ्रागति, यहाँ से भ्रन्यत्र जाना गति । मररप करना (च्यवन ) और जन्म लेना (उपपाद ) । अआगर्मेसि-.-श्रागामी । श्राणायणेरा वा - मर्यादा किये हुए क्षेत्र के बाहर से वस्तु मंगाई हो। झादारा-रिक्खेवरा-समिदी श्रादान-निक्षेपण समिति । सूक्ष्म जीवों की हिसा से बचने के लिए शास्त्रादि उपकरणों को पिच्छिका से माजन कर सावधानी पूर्वक रखना- उठाना श्रादान-निक्षेपण समिति है.




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