श्री दशलक्षण धर्म | Shri Dashalakshan Dharm

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Shri Dashalakshan Dharm by दीपचंदजी उपदेशक - Deepachandaji Upadeshak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दृशकक्षण धर्म । ्श्‌ #स्े उतम सादे । हल सूदोभाव: इति मादंव: जर्थात्‌-मृद ( नम्र ) भावोंका' दोना सोददी मादव धर्म हे । उत्तम अर्थात्‌ सच्चा ( जिसमें दिखावदद बनावट न हो ) ऐसा उत्तम मादंव घर्म आत्माही- का स्वभाव है । यद्द गुण, आत्मासे मान कषायके क्षय व उपशम वा क्षयोपशम होनेसे प्रगट होता है । अर्थात्‌ जब तक: किसी जीवको मानका उदय रहता है, तब तक वह प्राणी: अपने आपको सर्वोच्च मानकर, दूसरोंको छुच्छ गिनता हुवा, सबको अपने आधीन बनानेकी चेष्टा करता रददता है। जो कोई उसे नमस्कार प्रणाम नहीं करता है वा उससे मध्यस्थ वा विपक्षी होकर रहता है, वह उसे देख नहीं सक्ता है । सदेव उसे निचा दिखानेका विचार किया करता है । अपने बलाबठकों न बिचारकर सबछका भी साम्हना कर बेठता है । बन्दी दो जाने पर भी वह अपनेकों नतमस्तकन करके चाहे तो नष्टप्राण हो जाता है इत्यादि, इसीको मान कषाय कहते हैं । इस कपषायके उदय होते बिचार शक्ति भी कम दो जाती है ।. देखो, छंकाथधिपति प्रतिवासुदेव द्ानन (रावण ) जब सीताकों : इरण कर लाया और जब मंदोदरी आदिने उसे समझाया, तक. उसने यद्दी उत्तर दिया -




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