सप्तर्षि | Saptarshi

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Saptarshi  by शिवदास गुप्त 'कुसुम'- Shivdas Gupt 'Kusum'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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_मगवान्‌ तिलक । लिंलेक । के कारण तिलक पर मुकदमा चलाया गया था उसमें से कोई भी उनका लिखा नहीं था । ऐसी दशा में यदि बे चाहसे तो मुक्त हो सकते थे । किन्तु उनका कदापि यह स्वभाव नहीं था किसकट के भय से भीरु बन कर शझपने उत्तरदायित्व को दूसरे के खिर मढ़ श्रपने अलग हो जाँय । भगवान्‌ ने ख््षें जेल यात्रा स्वीकार को | पूना का प्रसिद्ध फर्गुसन कालेज ! न्यू इंजिश स्कूल को उत्तरोतर उन्नति देखकर संचालक का मन बढ़ा । चार चर्ष की कार्य -प्रणाली को देखकर इच्छा यद हुई कि स्कूल को कालेज का स्वरूप दिया जाय । कालेज बनाने के निंप घन जन दोनो का पर्याप्त सप्रद परम आवश्यक था | फतत। विचार उठते ही संचालकों ने इस काम के लिये लोकमान्य तिलक 'छौर श्रीयुत नामजोशी करा नाम लिया । प्रबन्धमार इन्हीं दोनों सख्नों को सौंपा गया । इन दोनों ने दक्षिण में कोई पचास हजार की रकम एकत्र की । तंत्यश्यात्‌ इस काम के निए दक्षिण -शिक्ता -समिति नाम की एक सस्या भी स्वापित की गई । सस्या के नियम लोकमान्य ने तैयार किये । कमेटी ने उन्हें एक कंठ से स्वीकार किया | फन यह हुआ कि खनन, १८४ ई० में, चंदादा ता के इच्छाजुसार बंबई के तत्का- लीन गर्वनर सर जेस्त फुंसन की जन्म स्सति में पूना के प्रसिद्ध फशुसन कालेज का जन्म हुआ । ढो बरस तक तो कालेज का काम निर्विध्त चलता गया । किन्तु दो वष का श्रन्त होते हो कालिज में मतभेद ने जन्म लिया | कतिपय कारणों से लोकमान्य तिलक ने कालेज से श्रपना खम्बस्ध रखना ठीक नं समझा । अतः रै८१० ६० में त्याग-पत्र षू




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