अलंकार तथा गुरुकुल समाचार | Alankar Tatha Gurukul Samachar

Alankar Tatha Gurukul Samachar  by सत्यव्रत सिद्धांतालंकार - Satyavrat Siddhantalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झड़ १ हित भी है। घह मीति विषयक मुख्य बातों पर पूरा ध्यान देने का यल्न करेगा ओर यह करते हुवे अपने वैय- क्तिक हित को अपेक्षा सावजनिक हित को अधिक द्वष्टि में रखेगा तथा स्वतम्त्र और निप्यक्षपात रहेगा । ज्नतन्त्र शासन प्रणाली में प्रत्येक नागरिक अपने सम्मति देने के अधि- कार का सदा उपयोग करेगा और किसी व्यक्ति को तभी सम्मति देगा, जब कि वह उस की योग्यता और इमानदारी से सन्तुप्र हो जायगा । यदि उसे नियामक सभा आदि में चुना जाय तो इसके लिये अपनी योग्यता को जांच कर अवश्य तैयार हो जायगा क्योंकि सावज़निक सेवा प्रत्येक मागरिक का कतंब्य है । नियामक सभायें ऐसे हो सुयोग्य, शुद्ध हृदय और जब सेघा के लिये उद्यत तथा उत्सुक लोगों से बनी होंगी । रिश्वत, घूसल्ोरी आदि का नाम भी न होगा । चाहे सब नेता एक मन फे न हों, चाहे सभायें सदा बुद्धिमान न हों, याहे शासक सदा निपुण न हों, पर सब उत्साही और ईमानदार अवश्य होंगे । घिश्वास अर सर्दिच्छा का चातावयरण अवश्य होना चाहिये । भगड़े उत्पन्न करने घाली बहुत सी बातें होंगी ही नहीं, क्योंकि किसी को विदोषध अधिकार प्राप्त न होंगे, जिस से कि रूपधा उत्पन्न हो । पद इसी लिये होंगे, कि सावजनिक सेवा का उत्तम अवसर मिल सके । सब की शक्ति और अधिकार बराबर, होंगे, कानूम के सामने सब एक समान होंगे” झलझार १५, बरस परयरसटटटटवसथरकरसयनललपरिफरमररपशयलण नल रनटनरपरपथटपटररपरपरपररयरकररथसपकलप न जनतन्त्र शासन प्रणाली का निसरस- न्देड यहो भादश है । यदि कभी ज़न- सन्त्र शासन प्रणाली पूर्णावथ्या को प्राप्त होगी, तो उस में प्रत्येक नागरिक वस्सुतः ही ऐसा होगा । जनतन्त्र शासन को यह कटपना कितनी गम्भोर: उपयोगी और आदश हे, यह दिखाने को यहां भावश्यकता नहीं । यह राजनोषि शास्त्र के अत्यन्त गम्भीर सिद्धान्तों पर स्थित है । शुक्का- चाय के शब्दों में 'भ्रप्रेरित हितकर सवंराष्ट्र भवेत्‌ यथा” का उष्य आदर्श कंबक इसी अवस्था में पूरा हो सकता है । समानता, स्वाघीनता भौर भ्रातृ्‌भाव-इन सिद्धान्तों के बल से. पक शासनों को गईियां दिलाई गई थीं, इन्हों को पू्णरूप से क्रियारूप में परिणत करना जनतन्त्र शासन प्रणोली का उद्वृश्य होना चाहिये । श्रघाचौम काल में जनतन्त्र शासन को प्रारम्भ हुधे एक सदी से मधिक समय गुजर गया, पर यह उद्देश्य पूरो तरह से पूरा नहीं हुवा। मजुष्य खय अपूर्ण है । अतः यदि उसके कार्यों में अपूणता हो तो इस में आश्चय ही क्या है ? हम किसी चीज की उत्तमता तुलनात्मक दटूष्टि से ही निश्चित कर सकते हैं। पूर्ण व आदश अवस्था दी उत्तम हो, यह बात नहीं । उत्तम घहदी है, जो तुलना- त्मक द्ष्टि से अधिक भच्छो है । इसो कसौटी पर हम बेखेंगे कि ऊपर बताये हुधे तोन शासन प्रकारों में जनतन्त्र शासन का कौन सा स्थान है । ( कमशाः ) न. के




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