अलंकार तथा गुरुकुल समाचार | Alankar Tatha Gurukul Samachar
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
34 MB
कुल पष्ठ :
352
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सत्यव्रत सिद्धांतालंकार - Satyavrat Siddhantalankar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)झड़ १
हित भी है। घह मीति विषयक मुख्य
बातों पर पूरा ध्यान देने का यल्न
करेगा ओर यह करते हुवे अपने वैय-
क्तिक हित को अपेक्षा सावजनिक
हित को अधिक द्वष्टि में रखेगा तथा
स्वतम्त्र और निप्यक्षपात रहेगा ।
ज्नतन्त्र शासन प्रणाली में प्रत्येक
नागरिक अपने सम्मति देने के अधि-
कार का सदा उपयोग करेगा और
किसी व्यक्ति को तभी सम्मति देगा,
जब कि वह उस की योग्यता और
इमानदारी से सन्तुप्र हो जायगा । यदि
उसे नियामक सभा आदि में चुना
जाय तो इसके लिये अपनी योग्यता
को जांच कर अवश्य तैयार हो जायगा
क्योंकि सावज़निक सेवा प्रत्येक
मागरिक का कतंब्य है । नियामक
सभायें ऐसे हो सुयोग्य, शुद्ध हृदय
और जब सेघा के लिये उद्यत
तथा उत्सुक लोगों से बनी होंगी ।
रिश्वत, घूसल्ोरी आदि का नाम भी
न होगा । चाहे सब नेता एक मन फे न
हों, चाहे सभायें सदा बुद्धिमान न हों,
याहे शासक सदा निपुण न हों, पर
सब उत्साही और ईमानदार अवश्य
होंगे । घिश्वास अर सर्दिच्छा का
चातावयरण अवश्य होना चाहिये ।
भगड़े उत्पन्न करने घाली बहुत सी
बातें होंगी ही नहीं, क्योंकि किसी
को विदोषध अधिकार प्राप्त न होंगे,
जिस से कि रूपधा उत्पन्न हो । पद
इसी लिये होंगे, कि सावजनिक सेवा
का उत्तम अवसर मिल सके । सब
की शक्ति और अधिकार बराबर, होंगे,
कानूम के सामने सब एक समान होंगे”
झलझार
१५,
बरस परयरसटटटटवसथरकरसयनललपरिफरमररपशयलण नल रनटनरपरपथटपटररपरपरपररयरकररथसपकलप न
जनतन्त्र शासन प्रणाली का निसरस-
न्देड यहो भादश है । यदि कभी ज़न-
सन्त्र शासन प्रणाली पूर्णावथ्या को
प्राप्त होगी, तो उस में प्रत्येक नागरिक
वस्सुतः ही ऐसा होगा । जनतन्त्र
शासन को यह कटपना कितनी गम्भोर:
उपयोगी और आदश हे, यह दिखाने
को यहां भावश्यकता नहीं । यह
राजनोषि शास्त्र के अत्यन्त गम्भीर
सिद्धान्तों पर स्थित है । शुक्का-
चाय के शब्दों में 'भ्रप्रेरित हितकर
सवंराष्ट्र भवेत् यथा” का उष्य आदर्श
कंबक इसी अवस्था में पूरा हो
सकता है । समानता, स्वाघीनता
भौर भ्रातृ्भाव-इन सिद्धान्तों के बल
से. पक शासनों को गईियां
दिलाई गई थीं, इन्हों को पू्णरूप से
क्रियारूप में परिणत करना जनतन्त्र
शासन प्रणोली का उद्वृश्य होना
चाहिये । श्रघाचौम काल में जनतन्त्र
शासन को प्रारम्भ हुधे एक सदी से
मधिक समय गुजर गया, पर यह
उद्देश्य पूरो तरह से पूरा नहीं हुवा।
मजुष्य खय अपूर्ण है । अतः यदि
उसके कार्यों में अपूणता हो तो इस
में आश्चय ही क्या है ? हम किसी
चीज की उत्तमता तुलनात्मक दटूष्टि
से ही निश्चित कर सकते हैं। पूर्ण व
आदश अवस्था दी उत्तम हो, यह बात
नहीं । उत्तम घहदी है, जो तुलना-
त्मक द्ष्टि से अधिक भच्छो
है । इसो कसौटी पर हम बेखेंगे
कि ऊपर बताये हुधे तोन शासन
प्रकारों में जनतन्त्र शासन का कौन
सा स्थान है । ( कमशाः )
न. के
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