पांचो घी में | Pancho Ghee Men
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विन्ध्याचल प्रसाद गुप्त - Vindhyachal Prasad Gupt
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दर पाँचों घी में
“सूब याद है सरकार, मैंने हो तो उसके घर की जमीन पर श्यालू
रोपा था ।”*
“हारे, ठुके तो याद है।” सूरतसिंद उसकी स्मरण शक्ति पर
सुग्ध हो उठे ।
“सरकार !” दुनदुनवा उमंगों से खेलने लगा । उत्साहपूबक
बोला--“झपने दरबार के सिंपाद्दी लोटासिंद ने श्राकर कहा--सर-
कार ] गरीब सहरा इल चलाने के लिए, तैयार ही नहीं दोता । कहता
है, तीन दिन बेगार में बीत गये। तीन दिनों से दो-दो 'सुथनी'
खाकर प्राण बचाये जा रहे हैं; श्र श्रब तो काबू नहीं जो हल
नचलावें ।' यह सुनते ही गरीबपरवर की श्राँखों में खून उतर श्ञाया
श्र झापने फौरन हुक्म दिया--'उसकी कफॉपड़ी उजड़बा कर फॉकवा
दो श्र उस जमीन पर हल चलवा कर झ्ालू रोपवा दो” ।””
“सच है । वह कमीना बहाना कर रहा था ।””
“और सरकार” टुनइनवा से कहा--“किस प्रकार दौड़कर
शौटासिंह श्ौर सात धाँगड़ों के साथ हमने श्रापके डुक्म का पालभ
किया था |”
“श्राखिर वू मेरा मुंदलगा सेवक है। तेरे शरीर में, मेरा नमक
कितना भींगा है !” मूरतसिंद उसके सर झाइसान लाद बैठे ।
सरकार का गुलाम हूँ मैं ।” इनइनवा ने श्रावेश में झ्पने
स्वामी के चरणों पर भाथा रख दिया । भरे गले से बोला--“सर-
कार | मैं तो भगवान से यही विनय करता हूँ--जब-जब मैं धरती पर
शवतार लूँ तब-तब श्रापकी खिंदमत में हो मेरा जीवन शुजरे श्रौर
सरकार के पाँव दबाते-दबाते ही मेरा दम निकले ।””
बाबू मूरतसिंह ने उसकी बातों पर काल नहीं दिया । उनकी
ध्यान किसी दूसरी झोर लगा था |
/.. “दुनदुनवा !” मूरतरिंद, ने मीन लोढ़ा ।
शृ
User Reviews
No Reviews | Add Yours...