राजस्थान में राठौड़ साम्राज्य का उदय और विस्तार | Rajasthan Mein Rathor Saamrajya Ka Uday Aur Vistar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हुमा था, तब से ही बह्दा के प्रतिद्वारो को राज्य निबेल होने लगा । उस समय की प्रतिह्दारो की मिर्बलता से लाभ उठाकर बदायु के राष्ट्कृूठ राजा गोपाल ने कल्नोज पर झधिकार कर लिया परन्तु राठौड़ो का अधिकार झधिक दिनो तक नही रहा क्यो कि गाहृडवाल यशोविग्रहन के पोत्र श्ौर महीचन्द्र के पुत्र चन्द्रदेव ने समस्त पाचाल देश विजय कर कन्नौज को श्रपनी राजघानी बनाया था, उस चन्द्र देव के दान पत्र वि स ११४८ से ११५६ तक के मिले हैं, जिस से धनुमान होता है कि बह वदायु के चौथे राष्ट्रकुट राबा गोपाल का समकालीन रहा होगा श्र उससे झथवा उसके पुत्र से उसने कन्नोज लिया होगा ।' ( जोधपुर का इतिहास भाग १ पृष्ठ १२६) । उप-संहार इस प्रकार मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हू कि राठौड़ शुद्ध भायें श्रौर प्राचीन क्षत्रियो के बशज हैं । वे उत्तर से दक्षिण में गये श्रौर बहा राष्ट्रकूट नाम से साम्राज्य की स्थापना की तथा लगभग तीन सी वर्ष तक सुहढ शासन किया । उसी काल मे उन्होंने गुजरात, राजस्थान, मध्यभारत, बिह'र, भर उत्तर प्रदेश मे फैल कर वहा घ्रग्नो जागीरे (सामन्तों के श्रघीनस्थ राज्य स्थापित किये कि जिन के झब तक अवशेष विद्यमान हैं । राजस्थान में चन्द्दी हट डी श्रादि के राठौडो मे से महृतत्वाकाक्षी व्यक्ति प्रकट हुप्रा और अपने बश का उद्धार कर उसे उच्च शिखर पर पहुंचाया । उसी के वशणों ने इस परम्परा को प्रबल विरोध का सामना करते हुए भी निभाया. भौर राजस्थान के नवकोटि मारवाड में एक उन्नत स आ्ाज्य स्थापित करने मे सक्षम हए । उन्हीं के नीर वशजो ने उत्तर-पूर्व मे पंजाब तक, पूर्वे में मथुरा तक, पश्टचिम में शिंघ भर गुजरात तक तथा दक्षिण मे मालवे तक बढ़कर उसका चिस्तार किया । इस कार्य मे राठौढो को भारत मे प्रवेश कर चुके हुए सुसलमानों से भी टक्‍करें लेनी पढ़ी झौर गहलोती श्रौर भाठियों को प्रति स्पर्धा का भी सामना करना पडा था । भारत मे सन्‌ १९४७ मे जत- तत्र की स्थापना मे समय राजस्थान, गुजरात, मालवा, हरियाणा भौर न मे सीहाजी के वशजो के १० राज्य श्रौर बहुत से ठिकाने विद्यमान । इस प्रकार झधोलिखित समस्त राठौढो का उनकी शाखाध्शाखाध्ो सद्ित एक ही जगद समर किये हुए इतिहाप के अभाव की पूर्ति में मैंने यह प्रयास किया है । यह जैसा बन पढ़ा है, पाठकों के सामने है ।




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