सूत्रकृतांगसूत्र हिंदी | Sootrakritangasutra Hindi

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Sootrakritangasutra Hindi by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र्ध पर मैं तुम्ह्वारी हिंसक-क्ूर प्रकृति को दयालुता में न बदल सका यही एक श्रर्मान है । संगम लज्जित मुख से खिसक गया, पर वह यातनायें देकर भी उन्हें चलायमान तो न कर सका । वे भी उसकी श्रसीम श्रवज्ञाओं पर जरा भी गर्म न हुये, प्रत्युत्त समभावस्थ ही रहे । ऐसे उत्तम समता के योगी, सन्माग दर्दाक पीछे श्रनन्त तीर्थंकर हो चुके हैं, श्रागे भी होंगे, उनकी निप्पक्ष उपकारिणी वाणी से श्रनन्तानन्त लोगों ने दुराग्रह-चुराइयोंके सागरसे पार भी पाया । हमारे लायक मित्र ्रिपिटकाचार्य महापण्डित राहुल रांकित्यायनने... महावीरत्तीर्थक रकें. उपदेश (सुत्रकृता ज्)का सरल-हिन्दी भापाकी वोलचालमें .श्रचुवाद करनेका बथाक्षयो- पद्म प्रयत्न किया है, देशकासके ग्रदुसार मेलजोल५1 यह कितना श्रच्छा स्वर्णयुग है कि इसमें कं भिन्न विचारक दूसरे भिन्‍न विचारककी घारणा-मान्यताश्रोंकी झपनी रा्ट्री-लोक भापामें प्रस्तुत करता है, यह श्रमल्य सेवा कितनी गौरवपुर्ण वस्तु है । पहले भी कई श्रच्छे लोगोंमें ऐसी ही विचारसरणी पाई गई है । जैसे कि पाणिनि ऋषि शाकटायन ऋषिकी रीतिको झ्रपने व्याकरणमें दज॑ करते हैं, झ्ौर गार्ग्य-गालव ऋषिके मतकी कदर करके उसे पसंद करते हैं, श्रीर अपनाते हैं । उन्होंने इसे शिप्टाचार श्ौर ग्रन्थका गौरव भी माना है । इसी भाँति यह युग भी राग-द्वेप मिटाकर गुण ग्रहणतापूवक परस्पर मिलनेका युग है । न कि खींचातानी का । प्रो० दिलमहम्मदने गीताको खालिस उदूं -शायरीमें रंगकर उसे दिलकी-गीता बनाया, श्रौर लोगोंने उसे चावसे श्रपनाया । श्रीमाचु राहुलने सुबकतांगका श्नुवाद करते समय स्वा- ध्याय-चिस्तन-मनन-निदिष्यासन पूर्वक इसकी टीका-चूर्णी- भाष्य-बृत्ति-श्रनुवाद श्रादिकी भी भाँखें देखी: हैं । यदि स्वाध्याय




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