सुत्तागमे भाग - ३ | Suttagame Vol-iii

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Suttagame Vol-iii by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पाक ( नोट ) आपने इन एप्टपटॉपर अंकित सम्मतियोसे यह तो जान ही छिया होगा कि ये प्रकाशन केसे हैं । बेसे तो सब सम्रदायोंके सुनियो और महासतिया एवं जिन्नासुओकी ओरसे सब्ोंकी मांगें घडावट आती रहती है, अयांत, सक़ोका प्रचार आधासे अधिक हो रहा है । ११५ अंगों से युक्त 'सुत्तागमे” महान अ्रथकी य्रशसा बड़े ९ महाविद्वानोनि मुक्तकंटसे की है । यह अपूर् ग्रेथराज केंब्रिज, चार्शिंग- रन, येंढे, फिलाडेल्फिया, कैंठीफोर्निया, छौवीलेंड, न्यूयारक, पिंरटन, चिकागों ( अमेरिका ), जर्मन, जापान, चीन, पैरिस, सिंगापुर, मुंबई, ककता, चैनारस मड़ास, आगरा, पंजाब, ढेहछी, भादारकर ओरेटियल इंस्टीव्यूट पूना आदिकें महापुस्तकाल्यों एवं यूनिवर्सिटियोंमें थी णोभा प्राप्त कर चुका है. । तथा वहांसे पयोप्त संख्यास प्रमाणपत्र और प्रशंसा पत्र आए हैं जिन्हें प्रंथराज के देहसनके असधिक बढ़ जाने के कारण नही दिया गया । अधिक क्या कहें: इसकी ज्यादह प्रशंसा करना मानों सूर्यको दीपक दिखाना है । इसी प्रकार अरथागम और उभया+ गसो को भी यथासमय मुनियों मद्दासतियों एव जिज्ञासुओके करकमलोमें पहुँचा- कर समिति अपना ध्येय पूरा करनेका प्रयल्न करेगी । समिति यही चाइती है कि हमारे सुनिगण प्रकाण्ड विद्वान वनकर जिन-शासनका उत्थान करे एवं आगमों का सर्वत्र प्रचार हो । मंत्री वू्पि/्टए तप 0, म. जुच्पिह एणए ए छिड 26967 2००७५ निणत किए, पका 2], कि. सना, एड एएपतछ७, क (छापण्ण॑त्७ कै 855, थे प्राण 5, 1954. दे. फघप७ #60४७० फि6 96&पगतिा कसेसाधु8, उध्छूकाः ९ णा ए फ९6 जिपबिकु छाए6 व. छरफाए88 छाप पेह७] फिप्घाएएड 0 एप्णा डिण्लि छपॉलाब्णत ्,किपिवाा्कुं हि छुन्प्रभा0हापु, का सण्णीऐं 9७ फ़ाहशा 6फ०णछु8 ७६0०. छुपा इ0. काट 2, एणनिणणा एव की . एकोठपड फ्रा्ेधिफड एफ. पधए8 का 06. 00एए6पॉहा;: रणेघाताह, . कप हक छ चेंढवडाःए65 पं! छिप दिउ 0 का इठो018705, फ6 चणेप्रशाह 5. फर्फ 0 बा फल एव पडा पिफिश्छाएए छिप 15 किलपुषडाएणिष कूशपध छे0 घड6,




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