आकंड़ेबाजी | Aankrebaji

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Aankrebaji by बिहारी दुबे - Bihari Dube

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बयान एक कौए का-सदर्भ राष्ट्रीय पक्षी सहामहिम राष्ट्रपति जो, सादर प्रणाम भागा है, भाप अपने एयर कडीशण्ड राष्ट्रपति भवन मे, कंबूतरों की गुटर- गू का मधुर संगीत सुनते हुए, भान दपूर्वक होंगे । किन्तु श्रीमानु जी, मैं अत्यन्त दुष्वी हूं । मेरे दुल्ल का कारण है, भारत की सरकार का कपटपूण निणय । जी हो * भारत सरकार ने राष्ट्रीय पक्षी के चयन मे पशपातत पर रवैया अपनाया 1 राष्ट्रीय पी के चयन के पूर्व किसी प्रकार की घोषणा न करके, अय पक्षियी को अपना पक्ष प्रस्तुत करन का अवसर नहीं दिया गया और गुप-बुप मोर मे थृल मे अयायपूण निणय द दिया गया । चयन की प्रक्रिया, फिर चयन के पश्चात्‌ भी, बरती गई गोपनीयता ही, इस पक्षपात का सबसे बडा सबूत है । इस मामले में गोपनीयता वरती गई, इसक लिए यहीं कहना पर्याप्त होगा कि मुक्त जैस जागरूव पक्षी को भी इस निणय की जानवारी वर्षों बाद मिल सकी । तो महामहिम ' मुझ भारत सरकार से मिणय पर मात्र आपत्ति नहीं, घोर आपत्ति है । कोई भी समकदार पली इस निणय को सही नहीं मानेगा । “मैं जानता हूं कि आजकल सत्य को सत्य सिद्ध करने के लिए भी सबूत अस्तुत करना अनिवाय होता है । सो में अपनी बात स्पप्ट करने के लिए कुछ अमुख मुद्दे आपके विचाराथ प्रस्तुत कर रहा हूं ।” “सबसे पहले रुप-रग को ही लीजिए । पता नहीं शासन ने विसे बहुकावे मे आकर मोर को छुबसूरत पतली मानव लिया । मेरी समक मे नहीं आता कि अजीब बदरग पसी मोर, जिसकी पूछ अनेक रंगो से रंगी हुई होती है और उस भाइनुमा पूछ को प्रत्येक सीक के सिरे पर बड़े-बड़े बंगनी धब्बे होते हैं, किस प्रकार निर्णायकों को पूबसूरद दिखाई दिये । यदि पूंछ ये अनेक रंगों दे




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