ऐसे जियें | Aise Jiye

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Aise Jiye by आचार्य श्री नानेश - Acharya Shri Naneshज्ञान मुनि जी महाराज - Gyan Muni Ji Maharaj

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ज्ञान मुनि जी महाराज - Gyan Muni Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चातुर्मास स्वय के लिए उपयोगी बने [ रे उजागर कर सकते है, उस महावीरत्व को उजागर करने मे सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान माता, पिता एव गुरु का होता है, पर भ्राज के माता-पिताओ की स्थिति बडी विचित्र होती जा रही है । जव मैं भ्रमरावती से राजस्थान को शोर विहार कर रहा था, तब बीच रास्ते मे एक ऐसा गाँव झाया, जहाँ-गोचरी के घर बहुत कम होने से ज्यादा रुकने का प्रसंग नहीं बना, वहाँ से जल्दी ही विहार कर दिया, जो लोग पहुँचाने के लिये झ्राये थे उनमे एक १२, १३ वर्पीय बालक भी था, जिसके पिताजी ने कहा--म० सा० इस वालक को श्राप श्रपने साथ ले जाओ आर दीक्षा दे दो । तव मैंने मनोवैज्ञानिक दृष्टि से कुछ सोचा श्रौर पूछा कि झ्राप इतने उदार कैसे वन रहे है; जिससे इस नन्हे से बच्चे को दीक्षा देने के लिये तैयार हो गये ? तव उन्होंने कहा कि यह लडका वडा नटखट उद्दण्ड एव चचल है, कभी तो मेरे ऊपर श्ौर कभी झपनी माँ के ऊपर भी यह हाथ उठा लेता है । तब मैंने पूछा कि--कभी श्राप पति-पत्नी मे भी लड़ाई होती है क्या ? तब वह वोला हाँ कभी-कभी हो जाती है । तब मैंने कहा झ्ापके ही सस्कारो का परिणाम है कि बच्चा उद्दड बन गया है। जव तक माता-पिता नही सुधरेगे, तब तक बच्चे को सुघारना व्यर्थ है । शिशु जीवन को सौम्य वनाने के लिये माता-पिता के सुन्दर कतंव्य ही बच्चो मे सस्कार का रूप लेते है । जीवन दीप की ज्योति प्रज्वलित रखने के लिये संस्कार स्नेह (तेल) का कार्य करता है । शिशु जीवन मे पडे सुन्दर या भझ्रसुन्दर प्रभाव उसके पूरे जीवन को बनाने या बिगाडने के उत्तरदायी होते हैं। संस्कार बीज है जीवन वृक्ष को पत्लवित करने के लिये । बालक को जन्म देने मात्र से ही माता-पिता के कतेंव्य की इतिश्री नही हो जाती, वरन्‌ उसके जीवन को सुसस्कारित बनाने का उत्तर- दायित्व भी उन्ही पर है । शैशव मे ही उदारता, वीरता, विनस्रता, धार्मिकता का गुण उसे माता के दूघ के साथ मिलते रहना चाहिये । माता चाहे तो झपने बालक को कर्ण या भामाशाह बना सकती है । बालक को महावीर या भरत बनाना भी माता के हाथ मे ही है । और चूहे की खडखडाहट मे घर छोड़कर भाग जाने वाला बुजदिल बनाना भी माता के हाथ मे है । ब्रह्मचयें के प्रज्ञापु ज से दीप्तिमान भीष्म भी उसे माता बना सकती है, और रावण बनाना भी उसी के हाथ है । बालक के जीवन पर एक सुशिक्षिता माता जो प्रभाव डाल सकती है, वहाँ सौ मास्टरो का प्रयास भी उससे असफल रहेगा । माता का वीरत्व बालक को विश्व-विजयी बना सकता है । बच्घुझ ! जो बात मैं श्रापको बतला रहा था, उस नटखट वालक को दीक्षा देने के लिये कहने वाले पिता को मैंने कहा कि “ऐसे वच्चे को झाप हमे देना चाहते हैं, यह यहाँ झ्राकर भी क्‍या करेगा, कही गुस्से मे झाकर हमारे पात्रे फोड बैठेगा ।” तो वह बोला--झाप तो उसे सुधार सकते है । तो मैने कहा सुधार सकते हैं, पर कठिनाई यह हैकि साधना के लिए तो सबसे पहले स्वभाव मे सौम्यता श्राना जरूरी है 1 साधना मे वढने वाले जिज्ञासुभ्नो को चाहिये कि झाज से वे झपनी शझ्रात्म




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