गीतावली का भाषा शास्त्रीय अध्ययन एवं वैज्ञानिक पद पाठ | Geetavali Ka Bhasha Shastriy Adhyayan Evm Vaigyanik Pad Path
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
271
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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(2) मुक्त पदग्ाम + वदूध पदग्ाम
और (3) मुक्त पदग्राम + मुक्त पदग्राम
सभी का यथा स्थान विस्तार से वर्णन किया गया है । विषम 22.2
में विद्वेषणों का वर्गीकरण 'अझथेगत' किया. गया है ! इसके श्रन्तगेंत दो प्रकार के
विशेषण ग्राते हैं। 2 2.2.1 में सावंनामिक विजेषण श्रौर 2.2.2.2 में संख्या
वाचक विशेषण बशित है )
विषय-क्रम 2.2.3 में विशेषणों का तीसरा वर्गीकरण “प्रकार्यगत” है जिसमें
विदेषणों का अध्ययन उनके कार्यों के श्राघार पर किया गया है । इस पज्चात्
उनके लघु-दीघें रुप, अ्वघारण के लिए प्रयुक्त रुप और विशेषणों में तुलता देखी
गई है ।
विषय-क्रम 2.3 में सर्वनामों का श्रध्ययन है जो वर्णन हमक ढंग का है ।
इसमें पुरुष वाचक, निश्चय वाचक, अनिश्चय वाचक, प्रशतवाचक, संवंघध वाचक,
निजवाचक, झ्राइर व चक, नित्य संबंधी ब्ौर संयुक्त सबेनाम श्राति हैं सभी स्वेगामों
को उनके मूल एवं तियंक रूपों के साथ शस्तुत किया गया हैं 1
विषय-क्रप 2.4 में क्रिया रुप-रचना प्रस्तुत की गई है । स्वंप्रथम 2.4 1 में
घातुम्रों के दो वर्ग मूल और यौगिक किए गए हैं । मूल घातुग्रों की श्राक्षरिक संरचना
पर प्रकाश डालते हुए योगिक घातुद्रों को सोपसर्गिक, नाम घ तु एवं अनुकरण सूलक
घातु-तीन वर्गों में विभाजित किया गया है । इसके अ्रनस्तर व'च्य (कतु वाच्य शोर
कर्म वाच्य) पर विचार है । इसके बाद गीतावली के प्र रणार्थक वर्णित है ।
विपय क्रम 2.4.2 में गीतावली में प्रयुक्त सहायक क्रियाओं पर विचार
संलग्न है । विपय क्रम 2.4.3 में भोताचली की कृदन्त रचना वर्णित है । 2.4.4 में
कल रचना का झ्रध्यण्त है । गीतावली की काल-रचना तीन भागों में विभक्त है
2441 में कदन्त काल, 2.4 4.2 में सुल काल और 2.4.4.3 में संयुक्त काल का
अध्ययन है । विपय क्रम 2.4.5 में संयुक्त क्रिया का श्रध्ययन है ।
विपय-क्रम 2.5 में क्रिया विजेषण तया अव्यय वर्शिन है । क्रिया विशेषणों
का झ्रध्ययन 2.5.1 में दो प्रकार 'ग्र्थ के आधार पर, श्रौर संरचना के आधार पर)
से किया गया है । 2.5.2 में अव्यय वर्शित है जो सामान्य सुचक श्रौर विस्मय सूचक
दो प्रकार के हैं ।
भ्रध्याय तीन में गीतावली की वाक्य-संरचना वर्णित है द्रालोच्य ग्रन्थ में
प्राप्त वाक्यों को संरचना की दृष्टि से तीन वर्गों में विभाजित किया गया है
1-वाक्य 2-उपवाक्य 3-वाकयाँशि 1
विपय-क्रम 3.1.1 में बाकप विचार वर्शित है। गीत बनी पें प्र पते वाक्य
दो श्रक'र के हैं- एक वहुउपवाइपीय वाइय पर वहुताबवीय वाकजएक उबर पयीय
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