गीतावली का भाषा शास्त्रीय अध्ययन एवं वैज्ञानिक पद पाठ | Geetavali Ka Bhasha Shastriy Adhyayan Evm Vaigyanik Pad Path

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Geetavali Ka Bhasha Shastriy Adhyayan Evm Vaigyanik Pad Path  by सरोज शर्मा - Saroj Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( रा ) (2) मुक्त पदग्ाम + वदूध पदग्ाम और (3) मुक्त पदग्राम + मुक्त पदग्राम सभी का यथा स्थान विस्तार से वर्णन किया गया है । विषम 22.2 में विद्वेषणों का वर्गीकरण 'अझथेगत' किया. गया है ! इसके श्रन्तगेंत दो प्रकार के विशेषण ग्राते हैं। 2 2.2.1 में सावंनामिक विजेषण श्रौर 2.2.2.2 में संख्या वाचक विशेषण बशित है ) विषय-क्रम 2.2.3 में विशेषणों का तीसरा वर्गीकरण “प्रकार्यगत” है जिसमें विदेषणों का अध्ययन उनके कार्यों के श्राघार पर किया गया है । इस पज्चात्‌ उनके लघु-दीघें रुप, अ्वघारण के लिए प्रयुक्त रुप और विशेषणों में तुलता देखी गई है । विषय-क्रम 2.3 में सर्वनामों का श्रध्ययन है जो वर्णन हमक ढंग का है । इसमें पुरुष वाचक, निश्चय वाचक, अनिश्चय वाचक, प्रशतवाचक, संवंघध वाचक, निजवाचक, झ्राइर व चक, नित्य संबंधी ब्ौर संयुक्त सबेनाम श्राति हैं सभी स्वेगामों को उनके मूल एवं तियंक रूपों के साथ शस्तुत किया गया हैं 1 विषय-क्रप 2.4 में क्रिया रुप-रचना प्रस्तुत की गई है । स्वंप्रथम 2.4 1 में घातुम्रों के दो वर्ग मूल और यौगिक किए गए हैं । मूल घातुग्रों की श्राक्षरिक संरचना पर प्रकाश डालते हुए योगिक घातुद्रों को सोपसर्गिक, नाम घ तु एवं अनुकरण सूलक घातु-तीन वर्गों में विभाजित किया गया है । इसके अ्रनस्तर व'च्य (कतु वाच्य शोर कर्म वाच्य) पर विचार है । इसके बाद गीतावली के प्र रणार्थक वर्णित है । विपय क्रम 2.4.2 में गीतावली में प्रयुक्त सहायक क्रियाओं पर विचार संलग्न है । विपय क्रम 2.4.3 में भोताचली की कृदन्त रचना वर्णित है । 2.4.4 में कल रचना का झ्रध्यण्त है । गीतावली की काल-रचना तीन भागों में विभक्त है 2441 में कदन्त काल, 2.4 4.2 में सुल काल और 2.4.4.3 में संयुक्त काल का अध्ययन है । विपय क्रम 2.4.5 में संयुक्त क्रिया का श्रध्ययन है । विपय-क्रम 2.5 में क्रिया विजेषण तया अव्यय वर्शिन है । क्रिया विशेषणों का झ्रध्ययन 2.5.1 में दो प्रकार 'ग्र्थ के आधार पर, श्रौर संरचना के आधार पर) से किया गया है । 2.5.2 में अव्यय वर्शित है जो सामान्य सुचक श्रौर विस्मय सूचक दो प्रकार के हैं । भ्रध्याय तीन में गीतावली की वाक्य-संरचना वर्णित है द्रालोच्य ग्रन्थ में प्राप्त वाक्यों को संरचना की दृष्टि से तीन वर्गों में विभाजित किया गया है 1-वाक्य 2-उपवाक्य 3-वाकयाँशि 1 विपय-क्रम 3.1.1 में बाकप विचार वर्शित है। गीत बनी पें प्र पते वाक्य दो श्रक'र के हैं- एक वहुउपवाइपीय वाइय पर वहुताबवीय वाकजएक उबर पयीय




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