अप्पर | Appar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
100
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अप्पर था व्यवहार ७
मुस जीवित रहते ही दे रहा है मरणातुल्य कप्ट प्रभु
दया करो मुझ पर,
और इससे मुवित दो ।
मैं,
युगों मे तुम्हारा भक्त हूं
कितु,
इस वात से अनजान
तुम रप्ट हो मुझसे
और इस मरणातक पीडा का
भागी बना रहे हो ।
तालाव के किनारे खडे
उन चौकीदारों से असावधान ।
जिन्होंने मुझसे कहा,
प्रेरित किया--
गइस तालाव मे कूद पटो,
सैरो और
इसकी गहराई का अनुमान वरो'--
मैं कूद पडा हूं इस जलाशय मे ।
और अच मुझे चहू
किनारा
दियायी नही देता
जहाँ मेरे पैर टिक सके ।
ऐसे शब्द
मैंने पहले कभी नही सुने थे ।
मुझे याद नही कि
क्व मैं मुल गया था
जल, फूल और धूप से
तुम्हारी पुजा-अचना करना
मुझे एसे किसी अवसर की
याद नहीं
जब मैंन तमिल में
तुम्हार लिए मधुर गीत नहीं गाये ।”
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