उभरते भारतीय समाज में शिक्षक और शिक्षा | Ubharte Bharatiya Samaj Main Shikshak Aur Shiksha

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सुनीति दत्त - Suniti Datt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पं नीतियों को प्रभावित करें। देश के नागरिक होने के नाते इसके लिए वे प्रेस तथा प्रचार-प्रसार के अन्य उपलब्ध माध्यमों का उपयोग कर सकते है। इस कार्य की पूर्ति के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षकों के संगठन, किसान सभा, ट्रेड यूनियन आदि जैसे जन-सगठनों और ग्राम पंचायत, सहकारी एवं कल्याण समितियों जैसी लोकाभिमुखी संस्थाओं से सक्रिय सहयोग प्राप्त करने की कोशिश करे। व्यक्तिगत रूप से भी शिक्षक औपचारिक शिक्षा व्यवस्था के द्वारा युवा-पीढ़ी को और अनौपचारिक शिक्षा के माध्यम से प्रौढों को वर्तमान भारतीय समाज की. सरचना मे आवश्यक परिवर्तनो के बारे में अपने विचारों से अवगत कराकर उन्हें प्रभावित कर सकते है। प्रस्तुत पुस्तक में हमने पूर्व अनुच्छेदों मे उल्लिखित विषयों पर व्यापक दृष्टि से विचार करने का प्रयास किया है। यह पाठुयपुस्तक उन लोगो के लिए लिखी गई है जो बच्चो के शिक्षण के लिए प्रारंभिक विद्यालय में काम करने के लिए उत्सुक है। इस पुस्तक में भारत में आज की शिक्षा को प्रभावित करने वाली सामाजिक शक्तियों के विवेचन पर विशेष रूप से चर्चा की गई है। इस में गतिशील भारतीय समाज में शिक्षा के मूल उद्देश्यों तथा उन परिवर्तनों का विवेचन किया गया है जिनके शिक्षा में आमतौर से और प्रारम्भिक शिक्षा में विशेष रूप से घटने की सम्भावना है। इस प्रकार जब शैक्षिक कार्यक्रम सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक हो तभी शिक्षा को समाज की उपलब्धि माना जा सकता है। किन्तु उसे एक और कठिन भूमिका भी निभानी है। यह आशा की जाती है कि वर्तमान समाज की दशा में सुधार और परिवर्तन लाने में शिक्षा को एक कारक के रूप मे काम करना चाहिए। समाज के प्रति शिक्षा की यह दुहरी उभरते भारतीय समाज मे शिक्षक और शिक्षा भूमिका है। इन दोनों भूमिकाओं का समान महत्व है, अत: समाज की वृद्धि और विकास मे दोनो की ही महत्वपूर्ण सार्थकता है। इस पुस्तक के शुरू के अध्यायों मे जिन विषयों पर सक्षेप मे चर्चा की गई है उन विषयों पर बाद वाले अध्यायो में फिर अधिक विस्तार से चर्चा की गई है। इससे यह नहीं समझ लेना चाहिए कि एक ही बात को दोहराया जा रहा है। वस्तुतः यह विधि जानबूझकर यह दशनि के लिए अपनाई गई है कि सामाजिक विषयों और शैक्षिक समस्याओ पर की जाने वाली चर्चाओं का विश्लेषण और जाच-परख यदि विस्तृत ढंग से की जाए तो ये बातें बढ़ती उम्र के बच्चों को अच्छी तरह से समझ मे आ सकती हैं। इस पूरी पुस्तक में निम्नलिखित बातों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है. - भारत के गांवों और शहरों में व्याप्त गरीबी जिससे शिक्षा में पिछडापन आता है और सामाजिक-आर्थिक हानि होती है। - भारतीय जनता के कुछ वर्गों में व्याप्त पूर्वाग्रह जिनसे राष्ट्रीय एकता में फूट और दुर्बलता की प्रवृत्ति पैदा होती है। -- बच्चो एव युवाओ के एक बडे भाग द्वारा शैक्षिक अवसरोी का लाभ उठाने का प्रतिरोध जिससे हमारी शिक्षा-सुविधाएँ अधिक बरबाद होती है। इन तीनों बातो का पुस्तक मे निरंतर उल्लेख है। ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि शिक्षकों और आप जैसे भावी शिक्षको का ध्यान निम्नलिखित बातों की ओर खींचना आवश्यक है -- अपनी विविध किन्तु नई एवं परिवर्तनशील भूमिकाओं को समझना, - समाज द्वारा आपको सौंपे गए इस महान सामाजिक दायित्व को अनुभव करना, - शिक्षक होने के नाते और शिक्षक समुदाय का सदस्य होने के नाते भी आपको समाज




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