प्रहलाद | Prahalad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
78
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)किया जाये । इसी बात को दृष्टि मे रखकर अंग्रेजो ने हिन्दी को ही अपनाया
और ईसाई मिशनरियो ने कलकत्ता के पास सीरामपुर नामक स्थान में एक
हिन्दी प्रेस की स्थापना करके उसके द्वारा प्रचुर परिमाण मे साहित्य प्रकाशित
किया । इधर ईसाई मिशनरी जब अपने विचारों का प्रचार हिन्दी मे कर रहे थे
तब केशवचन्द्र सन, स्वामी दयानन्द और नवीनचन्द्र राय जेसे सुधारको ने भी
अपने विचारों के प्रचार के लिए हिन्दी को ही अपनाया । यहा यह भी स्मरणीय
है कि उक्त तीनो महानुभावो मे से पहले दो बंगाली और तीसरे गुजराती थे ।
महात्मा गांधी के देश के राष्ट्रीय जागरण मो योगदान देने के साथ-साथ
सास्क़ृतिक एकता की कडी के रूप मो हिन्दी का जो महत्त्व स्थापित हुआ वह भी
कन उल्लेखनीय नहीं । गाधीजी ने अपने विचारों के प्रचार के लिये न केवल
हिन्दी को अपनाया बल्कि वे दो बार अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन
के अधिवेशनों के अध्यक्ष भी रहे । यहाँ तक कि उन्होंने राष्ट्रीय जागरण के
साथ-साथ देश की एकता के लिए हिन्दी के महत्व को इस सीमा तक अनुभव
किया कि उन्होंने सुदूर दक्षिण मे मद्रास मे “दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा'
की स्थापना भी की । इस सभा के माध्यम से दक्षिण मे जहाँ स्वाधीनता
आन्दोलन के लिए अनेक कार्यकर्ता उन्हे मिले वहाँ हिन्दी के प्रचार को भी
उन्होंने “राष्ट्रीय एकता' का मुल प्रश्न माना । यही नहीं उन्होंने अपने सुपुत्र
श्री देवदास गाधी को भी सर्वप्रथम वहाँ हिन्दी-प्रचारक के रूप हो भेजा ।
यह वह समय था जवकि “हिन्दी और “राष्ट्रीय एकता' दोनों शब्द
पर्थायवाची से हो गये थे । दोनो को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता.
था। हिन्दी की यह परम्परा रही है कि जहाँ उसके अनेक लेखकों, कवियों और
पत्रकारों ने देश की स्वतन्त्रता और उसके नव-जागरण से अपना उल्लेखनीय
योगदान दिया वहाँ उनके सामने देश की सास्क्तिक एकता का लक्ष्य भी प्रमुख
रहा । यह वह समय था जबकि सास्कृतिक और राजनीतिक एकता के इस यज्ञ
मे जहाँ हिन्दी-भाषी प्रदेशों के अनेक कवि और साहित्यकार अपना सहयोग दे
रहे थे वहाँ दूसरे प्रदेशों मे भी हिन्दी के माध्यम से राष्ट्रीय जागरण का उद्घोष
हो रहा था । इसके साक्ष्य के रूप मो हम हिन्दी के पुराने पत्रकार अमृतलाल
चक्रवर्ती और विष्णु सखाराम देउसकर के नाम प्रस्तुत कर सकते है । अमृत्रलाल
चक्रवर्ती बगभाषी होते हुए भी हिन्दी के “भारत मित्र का सम्पादन करते थे
थे और श्री देससकर ने मराठी होते हुए भी हिन्दी पत्रकारिता को अपने विचारों
के प्रचार का साधन बनाया था । बाद मे तो यह परम्परा और भी तत्परता से आगे
बढ़ी और सवंश्री माघवराव सप्रे, सिद्धनाथ माधव आगरकर, लक्ष्मणनारायण
गईं, बाबूराम विष्णु पराइ़कर तथा रामकृष्ण रघुनाथ खाडिलकर जैसे अनेक
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