मम्मट | Mammat

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Mammat by जगन्नाथ पाठक - Jagannath Pathak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मम्मट : व्यक्तित्व और कृतित्व 15 है । फिर भी अनेक बाहुय तथा आभ्यन्तर प्रमाणों के आधार पर मम्मट का समय निश्चित रूप से निर्धारित हो सका है । ईसा की ग्यारहवीं शती के मध्य, 1050 ई. में मम्मट का होना प्रमाणित होता है 1 काव्यप्रकाश में मम्मट ने अभिनवगुप्त के विचार उदधृत किये हैं । उनका कार्यकाल 990 ई. से 1020 ई. के बीच का माना गया है । अतः मम्मट का इसके बाद का होना स्वतः सिद्ध है । इसी प्रकार मम्मट ने पद्मगुप्त के “नवसाहसांकचरित” के कुछ पदों को का. प्र. मे उद्धृत किया है । नवसाहसांकचरित की रचना पदमगुप्त ने लगभग 1020 ई. में की थी, इससे भी मम्मट का 1020 के पश्चात्‌ होना सिद्ध होता है । अलडकारसर्वस्व के रचयिता रुयूयक भी अनेक बार मम्मट के काव्यप्रकाश को उद्धृत करते हैं तथा उसकी आलोचना भी करते है । रुचक के नाम से उनका काव्यप्रकाश पर व्याख्यान (संकेत) भी मिलता है । अलकारसर्वस्व की रचना रूयूयक ने 1135 और 1155 के बीच की । इस प्रकार काव्यप्रकाश का 1150 ई. के पूर्व निर्मित होना माना जा सकता है । जैन विद्वान माणिक्यचन्द्र ने भी का. प्र. की “संकेत” व्याख्या 1159-1160 मे लिखी । इससे भी सिद्ध होता है कि मम्मट ने काव्यप्रकाश की रचना 1150 ई. के पूर्व कर ली थी । एक बात जो इस क्रम में विशेष उल्लेखनीय है, वह है, काव्यप्रकाश के दशम उल्लास में “उदात्त” अलंकार के उदाहरण में भोजराज की उदारता के प्रशस्तिपरक इस पद्य का उद्घरण- मुक्‍ता: केलिविसूत्रहारगलिताः सम्मार्जनीभिह्ूताः प्रातः प्राइगणसीम्नि मन्थरचलदुबालाडघ्रिलाक्षारुणा: । दूराद्‌ दाडिमबीजशड्डिकितधिय: कर्षन्ति केलीशुका यद्विद्वदूभवनेषु भोजनृपतेस्तत्‌ त्यागलीलायित्तमु 1150511 (विद्वानों के भवनों में, क्रीडा के प्रसंग में टूट कर गिरे तथा झाड़ुओं से बुहारकर हटाये गये एवं प्रातः काल आंगन में चलती नवेलियों के चरणों के आलक्तक से लाली को प्राप्त मौक्तिकों को अनार के; बीज की भ्रान्ति से जो क्रीडाशुक दूर तक खीचते हैं वह राजा भोज के त्याग का चमत्कार (लीलायित) है ।




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